पुरुष पर उद्धरण

कर्तव्यनिष्ठ पुरुष कभी निराश नहीं होता।
-
संबंधित विषय : कर्त्तव्यनिष्ठऔर 1 अन्य

वह न तो स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक ही है। न सत् है, न असत् है और न सदसत् उभयरूप ही है। ब्रह्मज्ञानी पुरुष ही उसका साक्षात्कार करते हैं। उसका कभी क्षय नहीं होता, इसलिए वह अविनाशी परब्रह्म परमात्मा अक्षर कहलाता है। यह समझ लो।