
हमारा सारा सौंदर्य जिए हुए और सोचे हुए के बीच के दुखद अंतर्विरोध की छवि है।
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किताबें, जिन्हें हम सांत्वना समझने की भूल करते हैं; केवल हमारे दुःख को और गहरा करती हैं।

जो स्वयं को क्षमा नहीं कर सकता वह कितना दुःखी व्यक्ति है!

जब कोई व्यक्ति कुछ भी या किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता, वह उदास जीवन जीता है।

हम प्राचीन देशवासियों के पास अपना अतीत है—हम अतीत के प्रति आसक्त रहते हैं। उन, अमेरिकियों का एक सपना है: वे भविष्य के वादे के बारे में उदासी महसूस करते हैं।


वह अपने उदास रोगियों से कहा करते थे : ‘आप इस नुस्ख़े से चौदह दिनों में ठीक हो सकते हैं। हर दिन यह सोचने की कोशिश करें कि आप किसी को कैसे ख़ुश कर सकते हैं।’

दुख भूलना कठिन है, लेकिन उससे कठिन है मिठास याद रखना। सुख जताने का कोई ज़ख़्मी चिह्न नहीं हमारे पास। हम शांति से बहुत कम सीखते हैं।

रोकर दुख कम करना कायरों का काम है। दुख हमारी रीढ़ है।

उदासी एक बुराई है।

मेरा दुःख मुझे जीवन से बचाता है।

मुझे हमेशा उन स्त्रियों के लिए बहुत दुःख होता है, जो चलना पसंद नहीं करतीं। वे जीवन की इतनी दुर्लभ छोटी-छोटी झलकियाँ और अन्य बहुत कुछ खो देती हैं। हम स्त्रियाँ कुल मिलाकर ज़िंदगी के बारे में बहुत कम सीखती हैं।

सुख का साहस है और दुख का भी साहस है।

जो आदमी उस जगह को छोड़ना चाहता है, जहाँ वह रहता है, वह दुखी आदमी है।

क्या आप दुखी होने पर भी ख़ुश रह सकते हैं?

सोचते रहो। उदास रहो और बीमार बने रहो।

उदासी की कोख से बोध और व्यंग्य उत्पन्न होते हैं; उदासी असहज और अप्रिय है, इसीलिए उपभोक्ता समाज इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता है।

उदासी हमेशा के लिए रहेगी।

दुखी व्यक्ति कट्टरपंथी और उदास नास्तिक होता है।

वह लोक कितना नीरस और भोंडा होता होगा जहाँ विरह वेदना के आँसू निकलते ही नहीं और प्रिय-वियोग की कल्पना से जहाँ हृदय में ऐसी टीस पैदा ही नहीं होती, जिसे शब्दों में व्यक्त न किया जा सके।

बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुःखों के लिए रोया नहीं करते, अपितु वर्तमान में दुःख के कारणों को रोका करते हैं।

उदासी हमेशा के लिए रहेगी।

किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।

हर आदमी मेरा भाई था और हर महिला मेरी बहन। हम इतने समान थे। इतने नाज़ुक, क्षणिक, और आसानी से नष्ट होने वाले।

मैं इसलिए उदास नहीं हूँ कि तुमने मुझसे झूठ बोला, मैं इसलिए उदास हूँ; क्योंकि अब आगे से मैं तुम्हारा भरोसा नहीं कर पाऊँगा।

क्या हम मानव एक-दूसरे को दुख-ही-दुख दे सकते हैं, सुख नहीं? हम क्यों सदा कटिबद्ध होते हैं एक-दूसरे को ग़लत समझने के लिए? इतना कुछ है इस सृष्टि में देखने-समझने को, फिर भी क्यों हम अपने-अपने दुखों के दायरे में बैठे रहने को अभिशप्त है? अगर हम ख़ुशियाँ लूटना-लुटाना सीख जाएँ तो क्या यही दुनिया स्वर्ग जैसी सुंदर न हो जाए?

जीवन के प्रति निराशा के बिना जीवन के प्रति प्रेम संभव नहीं है।

हम किसी हास्यप्रद कहानी को जितनी देर तक जितने अधिक ध्यान से देखते हैं, वह उतनी ही उदासी भरी हो जाती है।

यह अजीब बात है, जब तुम दो अलग-अलग दुखों के लिए रोने लगते हो और पता नहीं चलता, कौन-से आँसू कौन-से दुख के हैं।

‘उदास’ शब्द ‘उदासी’ की जगह नहीं ले सकता।

अगर मैं दुख के बग़ैर रह सकूँ, तो यह सुख नहीं होगा; यह दूसरे दुख की तलाश होगी; और इस तलाश के लिए मुझे बहुत दूर नहीं जाना होगा; वह स्वयं मेरे कमरे की देहरी पर खड़ा होगा, कमरे की ख़ाली जगह को भरने…

निराशावादी वह व्यक्ति है जो सोचता है कि हर कोई उतना ही निकृष्ट है जितना वह ख़ुद है, और इसके लिए वह उनसे नफ़रत करता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere