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घास पर उद्धरण

प्रकृति, उर्वरता-अनुर्वरता,

जिजीविषा आदि विभिन्न प्रतीकों के रूप में घास कविता में उगती रही है।

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अग्नि की महिमा इसी में मानी जाती है कि वह समुद्र में भी वैसे ही प्रज्वलित हो जैसे सूखी घास में।

कालिदास
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हे राजिया! यदि सिंह मर भी जाए तो भी वह मिट्टी या घास नहीं खाता।

कृपाराम खिड़िया
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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