चेहरा पर उद्धरण
चेहरा किसी व्यक्ति की
पहचान से संलग्न है और इस आशय में उसके पूरे अस्तित्व से जुड़ा प्रसंग है। भाषा ने चेहरे पर उठते-गिरते भावों के लिए मुहावरे गढ़े हैं। उसे आईना भी कहा गया है। इस चयन में चेहरे को प्रसंग बनातीं कविताएँ संकलित हैं।

अगर किसी प्रेमी का चेहरा आपके दिल पर अंकित है, तो दुनिया अभी भी आपका घर है।

चेहरे को चेहरा कहने की अपेक्षा उसे अनंत सौंदर्य का दर्शन कहना सत्य के अधिक निकट होगा।

चेहरे के समान धुन की भी एक शक्ल होती है।

बहुत पहले ही मैं यह समझ गया था कि इस पृथ्वी पर ऐसी कोई चीज़ नहीं है, जिसमें संभावित नर्क के बीज न हों; एक चेहरा, एक शब्द, एक कम्पास या एक सिगरेट का विज्ञापन, जैसी चीज़ें मनुष्य को पागल बनाने में सक्षम हैं; अगर वह उन्हें भूल नहीं पाए।

आपको अपनी शैली की कमियों को, अपने चेहरे के दाग़ की तरह, स्वीकार करना होगा।

कुरूप व्यक्ति जब तक दर्पण में अपना मुँह नहीं देख लेता, तब तक वह अपने को दूसरों से अधिक रूपवान समझता है।


झूठ की सूरत देखने में कैसी चिकनी-चुपड़ी होती है।

अगर चेहरे गढ़ने हों तो अत्याचारी के चेहरे खोजो अत्याचार के नहीं।

उसका कपोल जीर्ण दिवसों का मानचित्र है।

चेहरा दिखाने की ख़्वाहिश? चेहरे देखने की ख़्वाहिश? ग़लत ख़्वाहिश।

अगर आपका चेहरा टेढ़ा है तो दर्पण को दोष देने का कोई लाभ नहीं है।

चेहरा कितनी विकट चीज़ है जैसे-जैसे उम्र गुज़रती है वह या तो एक दोस्त होता जाता है या तो दुश्मन।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere