साँस पर उद्धरण
साँस संस्कृत शब्द ‘श्वास’
का प्रचलित हिंदी रूप है, जिसका अर्थ प्राणवायु का आवागमन या श्वसन की क्रिया है। साँस जीवन-मृत्यु के बीच का पुल है। भाषा ने इसके महत्त्व को श्वास-विषयक मुहावरों के विविध प्रयोगों के रूप में दर्ज किया है; जहाँ जीवन-मृत्यु के अतिरिक्त संकोच, विकलता, अवकाश, गुँजाइश जैसे कई अभिप्रायों की उत्पत्ति होती है। प्रस्तुत चयन में साँस को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

जो गृहिणियाँ अपने पति को अख़बार के पीछे से घूर रही होती हैं, या बिस्तर पर उनकी साँसों को सुन रही होती हैं, वे किराए के कमरे में रहने वाली अविवाहिता से भी ज़्यादा अकेली हैं।

हमें उस झूठी स्त्री को मार देना चाहिए जो जीवित स्त्री को साँस लेने से रोकती है।

मुझे ख़ुद को साँस लेने के लिए याद दिलाना पड़ता है—दिल को भी धड़कने के लिए याद दिलाती हूँ।

जो चूहे के शब्द से भी शंकित होते हैं, जो अपनी साँस से चौंक उठते हैं, उनके लिए उन्नति का कंटकित मार्ग नहीं है। महत्त्वाकांक्षा का दुर्गम स्वर्ग उनके लिए स्वप्न है।

साँस रुकती है, उसे मौत कहते हैं। गति रुकती है, तब भी मौत है। हवा रुकती है, वह भी मौत है। रुकान सदा मौत है। जीवन नाम चलने का है।

प्रतिभा तो स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त साँस ले सकती है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere