आत्म पर गीत

आत्म का संबंध आत्मा

या मन से है और यह ‘निज’ का बोध कराता है। कवि कई बातें ‘मैं’ के अवलंब से कहने की इच्छा रखता है जो कविता को आत्मीय बनाती है। कविता का आत्म कवि को कविता का कर्ता और विषय—दोनों बनाने की इच्छा रखता है। आधुनिक युग में मनुष्य की निजता के विस्तार के साथ कविता में आत्मपरकता की वृद्धि की बात भी स्वीकार की जाती है।

भूल जाता हूँ

अन्नू रिज़वी

चंदन को विश्वास नहीं है

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

असमर्पित

रमानाथ अवस्थी

मेघ मेरे! मुझे घेरे!!

देवेंद्र कुमार बंगाली

जीने की वजह

प्रसून जोशी

ख़ुशक़िस्मत हैं

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere