नाव पर कविताएँ

कवियों ने नाव को जीवन

और गति के प्रतीक के रूप में देखा है। जीवन के भवसागर होने की कल्पना में पार उतरने का माध्यम नाव, नैया, नौका को ही होना है।

बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

टूटी नाव

गोविंद निषाद

नदियों के किनारे

गोविंद निषाद

निषादों की गली

गोविंद निषाद

चाँद पर नाव

हेमंत कुकरेती

आना अस्थि बनकर

गोविंद निषाद

एक सूनी नाव

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

नाव डूबती हुई

आशुतोष प्रसिद्ध

पोत

मिखाइल लेरमेंतोव

आँखें

राकेश मिश्र

हमारी नाव

नरेंद्र जैन

मेरी नाव तैयार है

बजरंग बिश्नोई

पुकार

केशव तिवारी

निरधार

मुकुंद लाठ

डोलती नाव

ममता बारहठ

नाव का हम क्या करते

कमल जीत चौधरी

झील एक नाव है

प्रेमशंकर शुक्ल

नावें

दिलीप शाक्य

तब नाव नहीं थी

मोहन राणा

नौका-विहार

ज्ञानेंद्रपति

नाव

सत्येंद्र कुमार

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere