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युग पर उद्धरण

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आधुनिक काल का ग़रीब, दया का पात्र नहीं समझा जाता; बल्कि उसे कचरे की तरह हटा दिया जाता है। बीसवीं सदी की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में पहली ऐसी संस्कृति की निर्मिति हुई, जिसके लिए भिखारी होना—कुछ नहीं होने का तक़ाज़ा है।

जॉन बर्जर
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प्रत्येक युग अपनी सामाजिक-ऐतिहासिक स्थिति की अनुभूत आवश्यकता के अनुसार, अपना साहित्य-निर्माण किया करता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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काल की छवि, मूर्ति, कविता वह धारणतीत काल के सारे रहस्य को वहन करती है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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मनु का नाम आते ही हमें अपनी सभ्यता के उस धुँधले प्रभात का स्मरण हो जाता है; जिसमें सूर्य की उषाकालीन किरणों के प्रकाश में मानव और देव, दोनों साथ-साथ विचरते हुए दिखाई देते हैं।

वासुदेवशरण अग्रवाल
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ऐतिहासिक युग में कोई विशेष ऐतिहासिक घटना-विकास हो रहा हो, उसका ठीक-ठीक प्रतिबिंब साहित्य में उभरे ही—यह आवश्यक नहीं है।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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स्कूल में हर दौर का नाम होता था। हम जिस दौर में भागे जा रहे हैं, उसे क्या नाम दें—यह सवाल समाजशास्त्रीय दृष्टि से बड़ा महत्व रखता है। सरकारी लोग और आम समाज वैज्ञानिक इसे आधुनिकीकरण का नाम देते हैं।

कृष्ण कुमार
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युग का धर्म यही है दूसरे को दी गई पीड़ा उलटकर अपने आप पर पड़ती है।

क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम
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किसी भी युग का काव्य अपने परिवेश से या तो द्वंद्व रूप स्थित होता है, या सामंजस्य के रूप में।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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आविष्कार से एक क्षण में इतना विनाश हो जाता है जिसके पुनर्निर्माण में सारा युग लगता है।

विलियम कांग्रेव
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खन्ता और कुदाल से मनुष्य अनेक तरह की रेखाएँ खोदता गया। युगों के बाद युग बीत गए किंतु रूप के साथ वे सब रेखाएँ एक नहीं हो सकीं, यद्यपि रूप की देह के साथ-साथ बनी रहीं, किंतु उससे मिल नहीं पाईं।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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काल की कसौटी पर खरी उतरकर कई वस्तुएँ सुंदर के रूप में प्रशंसा पाती रहती हैं, कई वस्तुएँ इस कसौटी पर आज भी खरी उतरने के कारण असुंदर ही बनी रह गई हैं।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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यदि लेखक आज ईमानदार है, तो उसे अपने प्रति और अपने युग के प्रति अधिक उत्तरदायी होना होगा।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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युग-युग में नीति बदलती रहती है।

महात्मा गांधी
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कला साहित्य और जीवन के मूल विचार—जिन से भारतीय संस्कृति पल्लवित हुई—वैदिक युग में स्फुट हुए।

वासुदेवशरण अग्रवाल
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हर युग का अपना सामूहिक पागलपन (कलेक्टिव न्यूरोसिस) होता है, जिससे निपटने के लिए एक मनोवैज्ञानिक उपचार की आवश्यकता होती है। वर्तमान युग में 'अस्तित्व संबंधी ख़ालीपन' ही सामूहिक पागलपन के रूप में सामने रहा है, जिसे शून्यवाद (निहीलिज़्म) के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

विक्टर ई. फ्रैंकल
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शताब्दियों के संदर्भ में सोचना; जैसा कि हम करते हैं—एक तरह से कृत्रिम है क्योंकि यह डायरी की केवल एक तारीख़ है।

यू. आर. अनंतमूर्ति
  • संबंधित विषय : समय
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जहाँ शब्दों से काम चल सकता था, वहाँ गोली और बम चलाने में संकोच करना इस युग का धर्म है।

कृष्ण कुमार
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नए युग को अत्यंत संक्षेप में बताना हो तो कहेंगे यह युग मानवता का युग है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी
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एक सभ्यता के एक भाव की परिक्रमा और आंदोलन बहुत से देशों, बहुत-सी जातियों में युगों तक होता रहा है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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किसी भी देश के, किसी भी युग में श्रेष्ठ साहित्यिक थोड़े ही होते हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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डाक के पहले के युग में इंतज़ार अकारण था और उसका प्रतिफल आकस्मिक।

कृष्ण कुमार
  • संबंधित विषय : डाक
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ब्राह्मण-युग में भारत नाम की उत्पत्ति का आधार दौष्यंति भरत को कहा गया है। इन्होंने अठहत्तर अश्वमेध यज्ञ यमुना तट पर और पचपन गंगा के तट पर किए।

वासुदेवशरण अग्रवाल
  • संबंधित विषय : नदी

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jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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