बाँसुरी पर उद्धरण
हिंदी के भक्ति-काव्य
में कृष्ण का विशिष्ट स्थान है और इस रूप में कृष्ण की बाँसुरी स्वयं कृष्ण का प्रतीक बन जाती है।

जब हरि मुरली अधर धरत।
थिर चर, चर थिर, पवन थकित रहैं, जमुना-जल न बहत॥

ईश्वर के सामने हम सभी गोपियाँ हैं। ईश्वर स्वयं न नर है, न नारी है, उसके लिए न पंक्तिभेद है, न योनिभेद है। वह 'नेति नेति' है। वह हृदयरूपी वन में रहता है और उसकी बंसी है अंतरनाद।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere