कृष्ण पर अड़िल्ल
सगुण भक्ति काव्यधारा
में राम और कृष्ण दो प्रमुख अराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इसमें कृष्ण बहुआयामी और गरिमामय व्यक्तित्व द्वारा मानवता को एक तागे से जोड़ने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। सगुण कवियों ने प्रेम और हरि को अभेद्य माना, प्रेम कृष्ण का रूप है और स्वयं कृष्ण प्रेम-स्वरुप हैं। प्रस्तुत चयन में भारतीय संस्कृति की पूर्णता के आदर्श कृष्ण के बेहतरीन दोहों और कविताओं का संकलन किया गया है।
चली जाति है आयु, जगत-जंजाल में।
कहत टेरिकैं घरी-घरी, घरियाल में॥
समै चूकिकैं काम, न फिरि पछताइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु, निसिदिन गाइए॥
स्याम सुबेद कौ सार है।
आशिक-तिलक, इश्क-करतार है॥
आनंद-कंद तीन गुनतें परें।
प्रीति-प्रतीति रसिक तासों करें॥
नंद-जसोदा, को रति, श्रीवृषभानु हैं।
इनतें बड़ो न कोउ, जग में आन हैं॥
गो-गोपी-गोपादिक-पद-रज ध्याइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु निसिदिन गाइए॥
सुत-पित-पति-तिय मोह, महादुखमूल है।
जग-मृग-तृस्ना देखि, रह्यो क्यों भूल है?
स्वपन-राज-सुख पाय, न मन ललचाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु, निसिदिन गाइए॥
ब्रज-बृन्दावन स्याम-पियारी भूमि हैं।
तहँ फल-फूलनि-भार रहे द्रुम झूमि हैं॥
भुव दंपति-पद-अंकनि लोट लुटाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल तू निसिदिन गाइए॥
नंदीस्वर, बरसानो गोकुल गाँवरो।
बंसीबट संकेत रमत तहँ साँवरो॥
गोबर्धन राधाकुंड सु जमुना जाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु निसिदिन गाइए॥
अंतर कुटिल कठोर, भरे अभिमान सों।
तिन के गृह नहिं रहैं, संत सनमान सों॥
उनकी संगति भूलि, न कबहूँ जाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु, निसिदिन गाइए॥
कृष्ण-भक्ति-परिपूरन जिनके अंग हैं।
दृगनि परम अनुराग जगमगै रंग हैं॥
उन संतन के सेवत दसधा पाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु निसिदिन गाइए॥
राधा-हित ब्रज तजत नहीं पल साँवरो।
नागर नित्य बिहार करत मनभावरो॥
राधा-ब्रज-मिश्रित जस रसनि रसाइए।
ब्रज-नागर नंदलाल सु निसिदिन गाइए॥
संग फिरत है काल, भ्रमंत नित सीस पर॥
यह तन अति छिनभंग, धुंवें को धौं लहर॥
यातें दुरलभ साँस, न वृथा गमाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु, निसिदिन गाइए॥
ब्रज-रस-लीला-सुनत न कबहुँ अघावनो।
ब्रजभक्तन, सत-संगति प्रान पगावनो॥
‘नागरिया' ब्रजवास कृपा-फल पाइए।
ब्रज-नागर नँन्दलाल सु निसिदिन गाइए॥
बँधे उलूखल लाल दमोदर हारिकैं।
बिस्व दिखायो बदन वृक्ष दिय तारिकैं॥
लीला ललित अनेक पार कित पाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु निसिदिन गाइए॥
मेटि महोच्छव इन्द्र कुपित कीन्हो महा।
जल बरसायो प्रलयकरन कहिए कहा॥
गिरि धरि करो सहाय सरन जिहि जाइए॥
ब्रज-नागर नन्दलाल सु निसिदिन गाइए॥
कलह-कल्पना, काम-कलेस निबारनौ।
परनिंदा परद्रोह, न कबहुँ बिचारनौ॥
जग-प्रपंच-चटसार, न चित्त पढ़ाइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु, निसिदिन गाइए॥
कहूँ न कबहूँ चैन, जगत दुखकूप है।
हरि-भक्तन कौ संग सदा सुखरूप है॥
इनके ढिग आनंदित समैं बिताइए।
ब्रज-नागर नँदलाल सु निसिदिन गाइए॥
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere