
मैंने दुखों, जीवन के ख़तरों और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में, सज़ा के बारे में… कम उम्र में ही जान लिया। इस सबकी उम्मीद गुनाहगार नर्क में करते हैं।

मुझे लगता है कि जीवन के हर आयाम में सत्ता, अनुक्रमों और राज करने की कोशिश में लगे केंद्रों को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए और उनको चुनौती देनी चाहिए। जब तक उनके होने का कोई जायज़ हवाला न दिया जा सके, वे ग़ैरक़ानूनी हैं और उन्हें नष्ट कर देना चाहिए। मनुष्य की आज़ादी की उम्मीद इससे ही बढ़ेगी।

प्रेम ‘करने’ का मतलब है अपने आपको बिना किसी शर्त के समर्पित कर देना, अपने आपको पूरी तरह दूसरे को सौंप देना—इस उम्मीद के साथ कि हमारा प्रेम उसके अंदर भी प्रेम पैदा करेगा।

मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए इस दुनिया में नहीं हूँ और आप मेरी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए इस दुनिया में नहीं हैं।

जब आप उम्मीद और डर को ख़त्म कर देते हैं, तब आप मर जाते हैं।

शायद ही दूसरी कोई ऐसी गतिविधि हो, दूसरा कोई ऐसा उद्यम हो, जो प्रेम की तरह बड़ी-बड़ी उम्मीदों और अपेक्षाओं से शुरू होकर इतने ज़्यादा मामलों में इतनी बुरी तरह विफल होता हो।

कभी-कभी चीज़ें एक कोमलता प्राप्त कर लेती हैं, ऐसी राक्षसी कोमलता जिसकी हम उनसे उम्मीद नहीं रखते हैं।

शब्द। शब्द। मैं शब्दों के साथ इस उम्मीद में खेलती हूँ कि शायद कोई संयोजन, यहाँ तक कि अवसरवश संयोजन भी वह बात कह सके जो मैं कहना चाहती हूँ।


जब भी मुझे निराशा होती है, मैं अपने अंत की नहीं, बल्कि सौभाग्य की और कुछ छोटे-मोटे चमत्कारों की उम्मीद करती हूँ, जो चमकदार कड़ी की तरह, मेरे दिनों के हार की फिर से मरम्मत कर देंगे।

मैं इस नियम का पालन करती हूँ : सबसे ख़राब के लिए तैयार रहो, सबसे अच्छे की उम्मीद रखो; और जो होता है उसे स्वीकार कर लो।


रेगिस्तान ऐसी जगह है, जहाँ उम्मीद नहीं है।


दुःसमय में जब मनुष्य को आशा और निराशा का कोई किनारा नहीं दिखाई देता तब दुर्बल मन डर के मारे आशा की दिशा को ही ख़ूब कस कर पकड़े रहता है।

अंग गल गए हैं, बाल सफ़ेद हो गए हैं, दाँत गिर गए हैं, काँपते हाथों में डंडा लिया हुआ है, फिर भी आशा मनुष्य का पिंड नहीं छोड़ती।

जिसे कुछ आशा है, वह एक तरह से सोचता है और कोई आशा नहीं होती, वह कुछ और ही प्रकार से सोचता है। पूर्वोक्त चिंता में सजीवता है, सुख है, तृप्ति है, दुःख है और उत्कंठा है। इसलिए वह मनुष्य को श्रांत कर देती है—वह अधिक समय तक नहीं सोच सकता। लेकिन आशाहीन को न तो सुख है, न दुःख है, न उत्कंठा है, फिर भी तृप्ति है।

वास्तव में जिसे किसी प्रकार की आशा नहीं है, वही सुख से सोता है। आशा का न होना ही परम सुख है।

दुःखी व्यक्तियों के पास आशा ही एकमात्र औषधि होती है।

भीष्म समाप्त हो गए, द्रोण मारे गए, कर्ण का भी नाश हो गया। अब पांडवों को शल्य जीत लेगा ऐसी आशा है। हे राजन्! आशा बड़ी बलवती होती है।

आशावाद आस्तिकता है। सिर्फ़ नास्तिक ही निराशावादी हो सकता है।

जो अन्य से आशा नहीं करता, वही शूर है।

आशा ही प्रेमी का सहारा है।

पेट जितना भी भरा रहे, आशा कभी नहीं भरती। वह जीवों को कोई-न-कोई अप्राप्य, कुछ नहीं तो केवल रंगों की माया का इंद्रधनुष प्राप्त करने के मायावी दलदल में फँसा ही देती है।


जैसे अँधेरे में घिरा एक तरुण पौधा प्रकाश में आने को अपने अँगूठों से उचकता है। उसी तरह जब मृत्यु एकाएक आत्मा पर नकार का अँधेरा डालती है तो यह आत्मा रौशनी में उठने की कोशिश करती है। किस दुःख की तुलना इस अवस्था से की जा सकती है, जिसमें अँधेरा अँधेरे से बाहर निकलने का रास्ता रोकता है।

अपने बीवी-बच्चों से, दोस्तों से, कोई अपेक्षा नहीं होनी चाहिए, अपने आपसे भी।

वह क्या था जो कभी पूरा नहीं हुआ, न बदला और न ही जिसकी आशा पूरी हुई?

प्यार, आशा और निराशा के बीच एक काँपता हुआ पुल है।

हर दिन का ब्योरा रखो, अपनी सुबह की तारीख़ को उम्मीद के रंग से भरो।

तुम्हें बहुत ज़्यादा प्रयासरत रहना चाहिए। संयत होना आसान नहीं है।

उम्मीद से बनता है एक बाग़।

मैं अपने विवेक से निराशावादी हूँ लेकिन अपनी इच्छाशक्ति से आशावादी हूँ।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere