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नदी पर उद्धरण

नदियों और मानव का आदिम

संबंध रहा है। वस्तुतः सभ्यता-संस्कृति का आरंभिक विकास ही नदी-घाटियों में हुआ। नदियों की स्तुति में ऋचाएँ लिखी गईं। यहाँ प्रस्तुत चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है, जिनमें नदी की उपस्थिति और स्मृति संभव हुई है।

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देशप्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आकलन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह साहचर्यगत प्रेम है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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पृथ्वी स्वयं इस नए जीवन को जन्म दे रही है और सारे प्राणी इस आनेवाले जीवन की विजय चाह रहे हैं। अब चाहे रक्त की नदियाँ बहें या रक्त के सागर भर जाएँ, परंतु इस नई ज्योति को कोई बुझा नहीं सकता।

मैक्सिम गोर्की
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किसी ने भी एक ही नदी में दो बार क़दम नहीं रखा है, लेकिन क्या कभी किसी ने एक ही किताब को दो बार पढ़ा है?

मरीना त्स्वेतायेवा
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गहरी नदियाँ शांत बहती हैं।

हारुकी मुराकामी
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जैसे गर्मी में छोटी-छोटी नदियाँ सूख जाती हैं, उसी प्रकार धनहीन हुए मंदबुद्धि मनुष्य की सारी क्रियाएँ छिन्न-भिन्न हो जाती हैं।

वेदव्यास
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समस्त प्राणियों को खा जाने वाले मृत्युदेव की भूख कभी नहीं बुझती। अनित्यता रूपी नदी अत्यंत तेज़ी से बह रही है। पंचमहाभूतों की गोष्ठियाँ क्षणिक हैं।

बाणभट्ट
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सुकवि के वचन अर्थादि का विचार किए बिना ही आनंदमग्न कर देते हैं, पुण्यमयी नदियाँ स्नान के बिना ही दर्शनमात्र से ही पवित्र कर देती हैं।

कवि कर्णपूर
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महान पुरुष तो शरणागत शत्रुओं पर भी अनुग्रह करते हैं। बड़ी नदियाँ अपनी सपत्नी पहाड़ी नदियों को भी सागर तक पहुँचा देती हैं।

माघ
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वेद, सांख्य, योग, पाशुपत मत, वैष्णव मत, इत्यादि परस्पर भिन्न मार्गों में 'यह बड़ा है, यह हितकारी है', इस प्रकार रुचि की विचित्रता से अनेक प्रकार के सीधे या टेढ़े पंथ को अपनाने वाले मनुष्यों के लिए हे परमात्म देव! आप ही एकमात्र प्राप्त करने योग्य स्थान हैं, जैसे नदियों के लिए समुद्र।

पुष्पदंत
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पवित्र नदियाँ, बिना स्नान किए, अपने दर्शनमात्र से ही दर्शक का मन पवित्र कर देती हैं।

कवि कर्णपूर
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जैसे बीच में विषम शिलाओं के जाने से नदी का वेग बढ़ जाता है वैसे ही अपने प्रिय से मिलने के सुख में बाधाएँ जाती हैं तो प्रेम सोगुना हो जाता है।

कालिदास
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और वह नदी! वह लहराता हुआ नीला मैदान! वह प्यासों की प्यास बुझाने वाली! वह निराशों की आशा! वह वरदानों की देवी! वह पवित्रता का स्रोत! वह मुट्ठीभर ख़ाक को आश्रय देने वाली गंगा हँसती-मुस्कराती थी और उछलती थी।

प्रेमचंद
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साहसिक कार्य बड़ा हो या छोटा, उसे कभी दूसरों के बलबूते पर आरंभ करो। अपने भरोसे पर, पार जाने के लिए गंगा में भी कूद पड़ो, परंतु केवल दूसरे के सहारे का भरोसा रखकर घुटनों तक के पानी में भी पाँव रखो।

इंद्र विद्यावाचस्पति
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ऋषियों का, नदियों का, कुलों का और महात्माओं का तथा स्त्रियों के दुश्चरित्र का उत्पत्तिस्थान नहीं जाना जा सकता।

वेदव्यास
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नदियों द्वारा समुद्र में डाला गया जल मेघों द्वारा पुनः मिल जाता है परंतु बनिए के घर रखी गई धरोहर फिर नहीं मिलती है।

कल्हण
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बड़ी नदी समुद्र को छोड़कर और कहाँ जाती है।

कालिदास
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समस्त सिद्धियों की हेतु यमुना को मैं प्रणाम करता हूँ।

वल्लभाचार्य
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तन, दीपशिखा और नदी का प्रवाह जब देखो तब वैसा का वैसा ही दिखाई देता है। किंतु बहना नित्य चलता रहता है, उसी प्रकार आयु निरंतर बढ़ती जाती है।

दयाराम
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नदियों के नाम तुम्हारे साथ रहते हैं। वे नदियाँ कितनी अंतहीन लगती हैं! तुम्हारे खेत ख़ाली पड़े हैं, शहर की मीनारें पहले जैसी नहीं रहीं। तुम सीमा पर खड़े होकर मौन हो।

चेस्लाव मीलोष
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एक मछुआरे के लिए यह मान लेना कितना ग़लत है कि वह अपनी नदी को अच्छी तरह जानता है।

अरुंधती रॉय