
जो लोग ख़ुशी की तलाश में घूमते हैं, वे अगर एक क्षण रुकें और सोचें तो वे यह समझ जाएँगे कि सचमुच ख़ुशियों की संख्या, पाँव के नीचे के दूर्वादलों की तरह अनगिनत है; या कहिए कि सुबह के फूलों पर पड़ी हुई शुभ्र चमकदार ओस की बूँदों की तरह अनंत है।

सवेरे में अर्थ होता है, शाम में महसूस करना।

प्रत्येक व्यक्ति एक दर्पण है। सुबह से साँझ तक इस दर्पण पर धूल जमती है और जो इस धूल को जमते ही जाने देते हैं, वे दर्पण नहीं रह जाते।

जो व्यक्ति प्रातःकाल एवं सायंकाल केवल दो समय भोजन करता है और बीच में कुछ यहीं खाता, वह सदा उपवासी होता है।

सज्जन लोग ही सत्पुरुषों के गुण-समूह को विख्यात करते हैं। प्रायः वायु ही पुष्पों की सुगंध का चारों ओर प्रसार करती है।

मैं न सत् हूँ, न असत् हूँ और न उभयरूप हूँ। मैं तो केवल शिव हूँ। न मेरे लिए संध्या है, न रात्रि है, और न दिन है, क्योंकि मैं नित्य साक्षीस्वरूप हूँ।

कल किया जाने वाला कार्य आज पूरा कर लेना चाहिए; जिसे सायंकाल करना है, उसे प्रातःकाल ही कर लेना चाहिए; क्योंकि मृत्यु यह नहीं देखती कि इसका काम अभी पूरा हुआ या नहीं।

प्रार्थना प्रातःकाल का आरंभ है और संध्या का अंत है।

मृत्यु का अर्थ रौशनी को बुझाना नहीं; सिर्फ़ दीपक को दूर रखना है क्यूंकि सवेरा हो चुका है।

ऊषा कभी मरती नहीं। ऊषा कभी जीर्ण नहीं होती।

हर दिन का ब्योरा रखो, अपनी सुबह की तारीख़ को उम्मीद के रंग से भरो।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere