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नदी पर कविताएँ

नदियों और मानव का आदिम

संबंध रहा है। वस्तुतः सभ्यता-संस्कृति का आरंभिक विकास ही नदी-घाटियों में हुआ। नदियों की स्तुति में ऋचाएँ लिखी गईं। यहाँ प्रस्तुत चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है, जिनमें नदी की उपस्थिति और स्मृति संभव हुई है।

नदी और पहाड़

शिवानी कार्की

टूटी नाव

गोविंद निषाद

हवा की बाँहें पसारे

कृष्ण मुरारी पहारिया

आज नदी बिल्कुल उदास थी

केदारनाथ अग्रवाल

निषादों की गली

गोविंद निषाद

सावन में यह नदी

कृष्ण मुरारी पहारिया

पार करना

प्रदीप सैनी

एक बजे के बाद

व्लादिमीर मायाकोव्स्की

नदियाँ

चेस्लाव मीलोष

अश्वेत व्यक्ति और नदियाँ

लैंग्स्टन ह्यूज़

नदी

जॉन एशबेरी

हुगली

अय्यप्प पणिक्कर

जितना भी दूर जाता हूँ

सुभाष मुखोपाध्याय

प्यार

आर्चीबाल्ड मैकलीश

नदी का बुलावा

गाब्रियल ओकारा

उगाए जाते रहे शहर

राही डूमरचीर

तीन नदियों का एक छोटा गीत

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

नदियों के किनारे

गोविंद निषाद

स्मृति

गोविंद निषाद

नदी में इतिहास

गोविंद निषाद

केन किनारे

अजित पुष्कल

नदी तुम इस किनारे हो

विनोद कुमार शुक्ल

गाडा टोला

राही डूमरचीर

रूप-नारान के तट पर

रवींद्रनाथ टैगोर

होना

सुघोष मिश्र

दुःख

गोविंद निषाद

अकेला पहाड़

सौरभ अनंत

नाव डूबती हुई

आशुतोष प्रसिद्ध

आना अस्थि बनकर

गोविंद निषाद

दरिया के तट पर

सरदार पूर्ण सिंह

सच बोलो, किसकी कन्या हो

कृष्ण मुरारी पहारिया

एक ग्रामीण नदी

सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम

एक नदी

अशरफ़ अबूल-याज़िद

वह चिड़िया जो

केदारनाथ अग्रवाल

पार

नरेश सक्सेना

मणिकर्णिका

कुमार मंगलम

नदी

गोविंद द्विवेदी

नदी के नाम

परमिंदरजीत

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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