महिमा पर उद्धरण
महिमा महानता की अवस्था
या भाव है। महिमा की गिनती आठ प्रकार की सिद्धियों में से एक के रूप में भी की गई है। इस चयन में शामिल काव्य-रूपों में ‘महिमा’ कुंजी-शब्द के रूप में उपस्थित है।

किसी महान व्यक्ति के अनुयायी प्रायः अपनी आंखें बंद रखते हैं ताकि वे उसका गुणगान अधिक अच्छी रीति से कर सकें।

माता का गौरव पृथ्वी से भी अधिक हैं। पिता आकाश से भी ऊँचा है।

न रूप, गौरव का कारण होता है और न कुल। नीच हो या महान उसका कर्म ही उसकी शोभा बढ़ाता है।

भारत की तो गंगा प्राण है, शोभा है, वरंच सर्वस्व है।

अग्नि की महिमा इसी में मानी जाती है कि वह समुद्र में भी वैसे ही प्रज्वलित हो जैसे सूखी घास में।

गौरव के अनुसंधान के स्थान घोड़ों की पीठें हैं, और महासम्मानित पद तेज़ तलवारों की धारों में है।

सचमुच संसार बड़ा आडंबर-प्रिय है!

लज्जा से बचो परंतु महिमा के पीछे मत दोड़ो—महिमा जैसा महँगा कुछ नहीं है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere