वृद्धावस्था पर उद्धरण
वृद्धावस्था जीवन का
उत्तरार्द्ध है। नीति-वचनों में इस अवस्था में माया से मुक्त होकर परलोक की यात्रा की तैयारी करने का संदेश दिया गया है तो आधुनिक समाजशास्त्रीय विमर्शों में वृद्धों के एकाकीपन और उनकी पारिवारिक-सामजिक उपेक्षा जैसे विषयों पर मनन किया गया है। आत्मपरक मनन में वृद्धावस्था जीवन के जय-पराजय की विवेचना की निमित्त रही है। प्रस्तुत चयन में शामिल कविताएँ इन सभी कोणों से इस विषय को अभिव्यक्त करती हैं।

हमेशा पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी से निराश रही है। नई पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी बनकर निराश होती रही है।

पिता स्त्री की कुमारावस्था में, पति युवावस्था में तथा पुत्र वृद्धावस्था में रक्षा करता है। स्त्री को स्वतंत्र नहीं रहना चाहिए।

बूढ़ा हो जाना जवानी को खो देना नहीं है, बल्कि अवसर और ताक़त का नया कार्यक्षेत्र है।

आयु के बीत जाने पर भी जिनके पास धन है, वे तरुण हैं। धन-हीन युवक होते हुए भी वृद्ध हो जाते हैं।

मैं जो बूढ़ी औरत बनूँगी, वह उस औरत से बिल्कुल अलग होगी जो मैं अब हूँ। उस बूढ़ी औरत की शुरुआत हो रही है।

मैं बाहर-भीतर विद्यमान, प्राचीनता से रहित तथा जन्म-मृत्यु और वृद्धत्व से रहित आत्मा हूँ—ऐसा जो जानता है वह किसी से क्यों डर सकता है।


यह निद्रा नेत्रों पर टिकी हुई, ललाट प्रदेश से उतरकर उसी प्रकार मुझे सता रही है, जैसे अदृश्य और चंचल वृद्धावस्था मनुष्य की शक्ति को पराजित करके बढ़ती जाती है।

हर वक़्त रिश्तेदारों और बच्चों के लिए तड़पने वाले बूढ़े सुखी नहीं होते।

कुछ दुख उम्र के साथ समझे जाते हैं।

अध्यात्म बुढ़ापे की बुढ़भस नहीं, तरुणाई की उत्तुंगतम उड़ान है।

वृद्धों और पागलों पर कोई दया नहीं करता।

प्रौढ़-वय का शासक अपने को वैसा ही क्रांतिकारी समझता रहता है, जैसा कभी युवावस्था में वह था।

जो आयु को चैलेंज करेगा, आस्कर वाइल्ड की 'पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे' बन जाएगा।

अच्छे बुढ़ापे का रहस्य केवल एकांत के साथ एक सम्मानजनक समझौता है।

बुढ़ापे में ख़ामोशी किसी-किसी को ही नसीब होती है।

बीमारी और बुढ़ापा—एक भयानक जोड़ा।

हम खेलना बंद नहीं करते क्योंकि हम बूढ़े हो जाते हैं; हम बूढ़े हो जाते हैं क्योंकि हम खेलना बंद कर देते हैं।

जिन बूढ़ों के चेहरों पर चैन का उजाला न हो उन्हें देख दुख होता है।

दूसरों की उपस्थिति का मृत हो जाना ही बुढ़ापा है और कुछ नहीं।

बूढ़ों की दुनिया बूढ़ी। वे मरने से पहले सब कुछ करना चाहते हैं और कर अक्सर कुछ कर नहीं पाते।

बावक़ार बुढ़ापे के लिए सेहत, माली फ़राग़त, और ख़ामोशी ज़रूरी...और अंदरूनी ताक़त जो पढ़ने, सोचने और ध्यान से ही मिलती है।

जो बूढ़े आख़िर तक संसार में ही फँसे रहे उनकी सूरत से कोई किरण नहीं फूटती।

सच्चे अर्थों में धार्मिक और आध्यात्मिक बूढ़े भी बावक़ार होते हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere