प्रतीक्षा पर उद्धरण
प्रतीक्षा या इंतिज़ार
किसी व्यक्ति अथवा घटित के आसरे में रहने की स्थिति है, जहाँ कई बार एक बेचैनी भी अंतर्निहित होती है। यहाँ प्रस्तुत है—प्रतीक्षा के भाव-प्रसंगों का उपयोग करती कविताओं से एक अलग चयन।


क्या ज़िंदगी प्रेम का लंबा इंतज़ार है?

चलते हुए आदमी के लिए इंतजार करना आसान है। पर ठहरे हुए आदमी के लिए?

काल नित्य ही लोगों का हरण कर रहा है, बुढ़ापे की प्रतीक्षा नहीं करता।

तीक्ष्ण प्रतिभा गुरु के उपदेश की प्रतीक्षा नहीं करती है और पीड़ा समय की प्रतीक्षा नहीं करती है।

जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं।

अंत का इंतज़ार ही नहीं करना चाहिए, उसका इंतज़ाम भी करना चाहिए।

जो बहुत प्रतीक्षा करता है वह बहुत कम उम्मीद कर सकता है।

अपने से परे, कहीं न कहीं, मैं अपने आगमन की प्रतीक्षा करता हूँ।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere