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वृद्धावस्था पर कविताएँ

वृद्धावस्था जीवन का

उत्तरार्द्ध है। नीति-वचनों में इस अवस्था में माया से मुक्त होकर परलोक की यात्रा की तैयारी करने का संदेश दिया गया है तो आधुनिक समाजशास्त्रीय विमर्शों में वृद्धों के एकाकीपन और उनकी पारिवारिक-सामजिक उपेक्षा जैसे विषयों पर मनन किया गया है। आत्मपरक मनन में वृद्धावस्था जीवन के जय-पराजय की विवेचना की निमित्त रही है। प्रस्तुत चयन में शामिल कविताएँ इन सभी कोणों से इस विषय को अभिव्यक्त करती हैं।

सेवानिवृत्ति

अविनाश मिश्र

साइकिल

बद्री नारायण

बूढ़ी औरत के बारे में

ह्यूगो विलियम्स

छाया की बड़ाई में

होर्खे लुइस बोर्खेस

यों ही

सू शि

एक बूढ़ा आदमी

सी. पी. कवाफ़ी

जब तुम पर बूढ़ापन छा जाए

विलियम बटलर येट्स

उत्तर पुरुष से

प्रमोद कुमार महांति

बिरले ही

सी. पी. कवाफ़ी

बाईजेंटियम के लिए नौकायन

विलियम बटलर येट्स

दादाजी

शुन्तारो तानीकावा

ठीक-ठीक कितने वर्ष का था

रामकुमार तिवारी

मर्त्य पिता

पीयूष तिवारी

दादी

भालचंद्र नेमाडे

बूढ़े

अजंता देव

लोरी—वृद्ध के लिए

फेदोर सोलोगुब

विरुद्ध प्रस्थान

अविनाश मिश्र

जोबन और बुढ़ापा

अब्दुल अहद 'आज़ाद'

लहलहाता-धनखेत

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

भरे धनखेत-सी

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

पाठांतर

विष्णु खरे

पिता

अर्पिता राठौर

आशीर्वाद

ज्ञानेंद्रपति

सब्ज़ी-बाज़ार में

निरंजन श्रोत्रिय

वृद्धावस्था

सामुईल गाल्किन

ईर्ष्या

चंदन सिंह

चालीसवें पड़ाव में

कंचन जायसवाल

बूढ़ा

परमानंद श्रीवास्तव

हाट से लौटते हुए

नित्यानंद नायक

लिखूँगा जो

नंदकिशोर आचार्य

बुढ़ापे में पिता

नीलेश रघुवंशी

औरतें... पचास पार की औरतें

मीनाक्षी जिजीविषा

वह बूढ़ा मुसलमान

अशोक वाजपेयी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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