Font by Mehr Nastaliq Web

वृद्धावस्था पर कविताएँ

वृद्धावस्था जीवन का

उत्तरार्द्ध है। नीति-वचनों में इस अवस्था में माया से मुक्त होकर परलोक की यात्रा की तैयारी करने का संदेश दिया गया है तो आधुनिक समाजशास्त्रीय विमर्शों में वृद्धों के एकाकीपन और उनकी पारिवारिक-सामजिक उपेक्षा जैसे विषयों पर मनन किया गया है। आत्मपरक मनन में वृद्धावस्था जीवन के जय-पराजय की विवेचना की निमित्त रही है। प्रस्तुत चयन में शामिल कविताएँ इन सभी कोणों से इस विषय को अभिव्यक्त करती हैं।

सेवानिवृत्ति

अविनाश मिश्र

साइकिल

बद्री नारायण

एक बूढ़ा आदमी

सी. पी. कवाफ़ी

उत्तर पुरुष से

प्रमोद कुमार महांति

बिरले ही

सी. पी. कवाफ़ी

ठीक-ठीक कितने वर्ष का था

रामकुमार तिवारी

मर्त्य पिता

पीयूष तिवारी

दादी

भालचंद्र नेमाडे

बूढ़े

अजंता देव

लोरी—वृद्ध के लिए

फेदोर सोलोगुब

विरुद्ध प्रस्थान

अविनाश मिश्र

भरे धनखेत-सी

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

लहलहाता-धनखेत

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

जोबन और बुढ़ापा

अब्दुल अहद 'आज़ाद'

पाठांतर

विष्णु खरे

पिता

अर्पिता राठौर

आशीर्वाद

ज्ञानेंद्रपति

सब्ज़ी-बाज़ार में

निरंजन श्रोत्रिय

वृद्धावस्था

सामुईल गाल्किन

लिखूँगा जो

नंदकिशोर आचार्य

हाट से लौटते हुए

नित्यानंद नायक

चालीसवें पड़ाव में

कंचन जायसवाल

ईर्ष्या

चंदन सिंह

बूढ़ा

परमानंद श्रीवास्तव

बुढ़ापे में पिता

नीलेश रघुवंशी

औरतें... पचास पार की औरतें

मीनाक्षी जिजीविषा

वह बूढ़ा मुसलमान

अशोक वाजपेयी

साठ के पार

अमर दलपुरा

पार्क में बूढ़े

निरंजन श्रोत्रिय

बुढ़ापा

अरुण कमल

उम्र

केशव

बुढ़ापा

बालमणि अम्मा

ठौर

अशोक शाह

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere