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शर्म पर उद्धरण

शर्म का एक अर्थ लज्जा,

हया, संकोच आदि है; जबकि एक अन्य अर्थ में यह दोषभाव या ग्लानि का आशय देता है। इस चयन में शर्म विषय से संबंधित कविताओं को शामिल किया गया है।

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मुझे अपने अतीत से प्यार है। मुझे अपने वर्तमान से प्यार है। जो मेरे पास था उसमें मुझे शर्म नहीं थी, और मैं इस बात से दुखी नहीं हूँ कि अब वह मेरे पास नहीं है।

कोलेट
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'लज्जा' नामक अच्छी महिला 'मद्य' नामक अशुभ भयंकर दोष से युक्त व्यक्ति के सामने नहीं आएगी।

तिरुवल्लुवर
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लज्जा से बचो परंतु महिमा के पीछे मत दोड़ो—महिमा जैसा महँगा कुछ नहीं है।

सिडनी स्मिथ
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ग़ुरबत और ग़लाज़त दो बहनें : दुनिया भर में।

कृष्ण बलदेव वैद
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निर्लज्जता सब कष्ट से दुस्सह है। और कष्टों से शरीर को दुःख होता है, इस कष्ट से आत्मा का संहार हो जाता है।

प्रेमचंद
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रागांधों को भला लज्जा कहाँ?

कल्हण

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere