संगीत पर निबंध
रस की सृष्टि करने वाली
सुव्यवस्थित ध्वनि को संगीत कहा जाता है। इसमें प्रायः गायन, वादन और नृत्य तीनों शामिल माने जाते हैं। यह सभी मानव समाजों का एक सार्वभौमिक सांस्कृतिक पहलू है। विभिन्न सभ्यताओं में संगीत की लोकप्रियता के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। भर्तृहरि ने साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को पूँछ-सींग रहित साक्षात् पशु कहा है। इस चयन में संगीत-कला को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
अलौकिक शिशु-गायक मास्टर मदन
जो लोग जन्म-परंपरा को नहीं मानते—जो लोग इस बात पर विश्वास नहीं करते कि पूर्व-जन्म के संस्कार बीज रूप से बने रहते हैं और समुचित उत्तेजना पाते ही फूलने और फलने लगते हैं—उन्हें मास्टर मदन को देखना चाहिए, उसका गाना सुनना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि इस शिशु
महावीर प्रसाद द्विवेदी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere