संत तुकाराम के उद्धरण



मनुष्य इस संसार में दो दिन का अतिथि है।



मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि वह भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।

स्वामी का कार्य, गुरु भक्ति, पिता के आदेश का पालन, यही विष्णु की महापूजा है।

आयु का अंतिम दिन सुखद व्यतीत हो, इसलिए यह कठिन परिश्रम मैंने किया। अब मैं चिंतारहित होकर विश्राम कर रहा हूँ तृष्णा की दौड़ समाप्त हो चुकी है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

दुःखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है।

यदि तदनुसार आचरण नहीं किया तो केवल कहने या पढ़ने से क्या लाभ?

दीन-दुखियों की सेवा ही प्रभु की पूजा है।

तिलक और माला धारण कर लेने मात्र से हृदय में भक्तिभाव नहीं जाग जाता है। यदि कोई प्रेम के बिना कोरा उपदेश देता है तो वह व्यर्थ ही भौंकता है—अनुभव के बिना बोलना निरुपयोगी है।

हरि कथा तो भगवान्, भक्त और नाम का त्रिवेणी-संगम है।




पत्थर की प्रभु-मूर्ति भी है और पत्थर की सीढ़ी भी है। एक की पूजा करते हैं, दूसरे पर पैर रखते हैं। सार वस्तु है भाव। यही अनुभव में भगवान होकर प्रकट होता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया









प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता दिखाया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया





सब कुछ ब्रह्म रूप है, कोई स्थान उससे रिक्त नहीं, तब प्रतिमा ईश्वर न हो यह कैसे हो सकता है?
-
संबंधित विषय : ईश्वर
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

ऐसे दुष्ट बहुत होने चाहिए। हम पर उनका उपकार है। वे हमारे पापों का प्रक्षालन, बिना कोई मूल्य लिए और बिना साबुन के करते हैं। वे मुफ़्त में मज़दूर हैं जो हमारा बोझा ढोते हैं। वे हमें भवसागर से पार कर देते हैं और स्वयं नरक चले जाते हैं।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

जिसमें भगवान् रूपी मिश्रण है, ऐसा जो भी अन्न हम लेते हैं, उसमें स्वाद आ जाता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

प्रेम की कलह है। बच्चा पल्ला पकड़कर ऐंचता-ऐठता है। पिता को इधर-उधर हिलने नहीं देता है। यदि पिता चाहे तो बच्चे को झटक सकता है, उसमें कौन से बड़े बल की ज़रूरत है? झटका देने में देर भी कितनी लगेगी? परंतु स्नेह-सूत्र के जाल ऐसे हैं, कि बलवान भी उनमें फँस जाते हैं।
-
संबंधित विषय : प्रेम
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

भक्ति रूपी वधू से विवाह हो गया है। अब चार दिन आनंद ही आनंद है।
-
संबंधित विषय : आनंद
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया






यदि तुम किसी को दूध नहीं पिला सकते तो मत पिलाओ, परंतु छाछ देने में क्या हानि है? यदि किसी को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो क्या प्यासे को पानी भी नहीं पिला सकते?
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया


मिट्टी का पशुपति (शिव) बनाया तो उससे मिट्टी की क्या महत्ता? शिव की पूजा शिव को प्राप्त होती है, और मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है। पत्थर का विष्णु बनाया किंतु विष्णु पत्थर नहीं है। विष्णु की पूजा विष्णु को प्राप्त होती है और पत्थर, पत्थर के रूप में ही रह जाता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
