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संत तुकाराम

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महाराष्ट्र के संत कवि। भक्ति के अभंग पदों के लिए प्रसिद्ध।

महाराष्ट्र के संत कवि। भक्ति के अभंग पदों के लिए प्रसिद्ध।

संत तुकाराम के उद्धरण

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अभ्यास के बिना साध्य की प्राप्ति हो, यह संभव नहीं है।

अंधे की लाठी पकड़ने वाला अंधा हो तो दोनों ही गड्ढे में गिरते हैं।

मनुष्य इस संसार में दो दिन का अतिथि है।

धर्म का अर्थ है प्राणियों पर दया।

प्राणियों का पालन और दुष्टों का संहार इसी का नाम है 'दया'।

मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि वह भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।

दुःखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है।

जिस कर्म से ईश्वर हमसे दूर होता है वह पाप है।

पत्थर को पारस के स्पर्श से क्या लाभ?

जो अन्य से आशा नहीं करता, वही शूर है।

जो शत्रु हाथ में शस्त्र लेकर आया है, उसे तलवार से ही नष्ट करना चाहिए।

कांतिहीन के अंग पर अलंकार भी अपने भाग्य को रोते हैं।

आयु केवल चार दिन की है।

ऐसे दुष्ट बहुत होने चाहिए। हम पर उनका उपकार है। वे हमारे पापों का प्रक्षालन, बिना कोई मूल्य लिए और बिना साबुन के करते हैं। वे मुफ़्त में मज़दूर हैं जो हमारा बोझा ढोते हैं। वे हमें भवसागर से पार कर देते हैं और स्वयं नरक चले जाते हैं।

तुकाराम कहता है कि निश्चय का बल हो तो फल की प्राप्ति है।

प्रभु का सर्वत्र सुकाल है, दुर्भाग्यशाली को अकाल है।

यदि तुम किसी को दूध नहीं पिला सकते तो मत पिलाओ, परंतु छाछ देने में क्या हानि है? यदि किसी को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो क्या प्यासे को पानी भी नहीं पिला सकते?

मेरा मरण मुझे अमरत्व प्रदान कर स्वयं मृत्यु को प्राप्त हो गया।

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