संत तुकाराम के उद्धरण



मनुष्य इस संसार में दो दिन का अतिथि है।



मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि वह भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।

दुःखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है।







ऐसे दुष्ट बहुत होने चाहिए। हम पर उनका उपकार है। वे हमारे पापों का प्रक्षालन, बिना कोई मूल्य लिए और बिना साबुन के करते हैं। वे मुफ़्त में मज़दूर हैं जो हमारा बोझा ढोते हैं। वे हमें भवसागर से पार कर देते हैं और स्वयं नरक चले जाते हैं।
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यदि तुम किसी को दूध नहीं पिला सकते तो मत पिलाओ, परंतु छाछ देने में क्या हानि है? यदि किसी को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो क्या प्यासे को पानी भी नहीं पिला सकते?
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