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माया पर उद्धरण

‘ब्रह्म सत्यं, जगत मिथ्या’—भारतीय

दर्शन में संसार को मिथ्या या माया के रूप में देखा गया है। भक्ति में इसी भावना का प्रसार ‘कबीर माया पापणीं, हरि सूँ करे हराम’ के रूप में हुआ है। माया को अविद्या कहा गया है जो ब्रह्म और जीव को एकमेव नहीं होने देती। माया का सामान्य अर्थ धन-दौलत, भ्रम या इंद्रजाल है। इस चयन में माया और भ्रम के विभिन्न पाठ और प्रसंग देती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

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हे मन! मायाजाल में मत फँसो, काल अब ग्रसना ही चाहता है।

संत तुकाराम
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सभी वहम ख़ूबसूरत नहीं होते।

कृष्ण बलदेव वैद

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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