Font by Mehr Nastaliq Web

विस्थापन पर कविताएँ

अपनी जगहों को छोड़कर

दूसरी जगहों पर मजबूरन, जबरन या आदतन जाना युगों से मानवीय जीवन का हिस्सा रहा है; लेकिन निर्वासन या विस्थापन आधुनिक समय की सबसे बड़ी सचाइयों में से एक है। यह चयन उन कविताओं का है जिन्होंने निर्वासन या विस्थापन को अपने विषय के रूप में चुना है।

शहर

अंजुम शर्मा

आदमी का गाँव

आदर्श भूषण

ऊँट

कृष्ण कल्पित

गाँव में सड़क

महेश चंद्र पुनेठा

बहुत बुरे हैं मर गए लोग

चंडीदत्त शुक्ल

तुम्हारा होना

राही डूमरचीर

छठ का पूआ

रामाज्ञा शशिधर

मुझे आई.डी. कार्ड दिलाओ

कुमार कृष्ण शर्मा

शरणार्थी

प्रभात

वो स्साला बिहारी

अरुणाभ सौरभ

हिसाब

जावेद आलम ख़ान

मेट्रो से दुनिया

निखिल आनंद गिरि

बच्चे

अमिताभ

हरेक की ओर

मारीना त्स्वेतायेवा

बारिश

विजय राही

आँसू

दुन्या मिखाइल

कुहरिल सूरज

अन्ना अख्मातोवा

यास्वो के नज़दीक भुखमरी शिविर

वीस्वावा षिम्बोर्स्का

इच्छाओं का कोरस

निखिल आनंद गिरि

यात्रा

अरुण कमल

शहर में लौटकर

शैलेंद्र साहू

जा रहे हम

संजय कुंदन

बेदख़ली

प्रभात

सावन सुआ उपास

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

मक़बूल

अरमान आनंद

विज्ञापन

ज़ुबैर सैफ़ी

रायपुर बिलासपुर संभाग

विनोद कुमार शुक्ल

कल सपने में पुलिस आई थी

निखिल आनंद गिरि

विलाप नहीं

कुमार वीरेंद्र

इमारत

मोतीलाल साक़ी

दलाई लामा

घनश्याम कुमार देवांश

गाड़िया लुहार

गोरधनसिंह सेखावत

निर्वासन

देवी प्रसाद मिश्र

डूब मरो

कृष्ण कल्पित

तिब्बत

उदय प्रकाश

एक आदमी आदेश देकर

पंकज चतुर्वेदी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए