कुंठा पर कविताएँ

कुंठा मानसिक ग्रंथि

अथवा निराशाजन्य अतृप्त भावना या ‘फ़्रस्ट्रेशन’ है। स्वयं पर आरोप में यह ग्लानि या अपराध-बोध और अन्य पर दोषारोपण में ईर्ष्या या चिढ़ का द्योतक भी हो सकता है। मन के इस भाव को—इसके विभिन्न अर्थों में कविता अभिव्यक्त करती रही है।

देना

नवीन सागर

शीघ्रपतन

प्रकृति करगेती

मनःस्थिति

अष्टभुजा शुक्‍ल

इच्छाओं का कोरस

निखिल आनंद गिरि

साज़िश

नवीन रांगियाल

कैसा तुमने साथ निबाहा?

कृष्ण मुरारी पहारिया

मृत्यु-भोग

जगदीश चतुर्वेदी

ख़्वाब

माधुरी

कहाँ

अमित तिवारी

कुंठाएँ, पिपासा और बारिश

जगदीश चतुर्वेदी

अवसाद

महिमा कुशवाहा

खंडित अहं

जगदीश चतुर्वेदी

हिप्पोपटोमस

श्याम परमार

एक जिंघांसु का वक्तव्य

जगदीश चतुर्वेदी

फ़्रस्टेशन

मोहम्मद अनस

मैंने गढ़ा

माधुरी

राहें

माधुरी

कुंठा

विनोद भारद्वाज

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere