बेरोज़गारी पर कविताएँ

बेकारी या बेरोज़गारी

आधुनिक राज-समाज की एक प्रमुख समस्या है। अपने निजी अनुभवों के आधार पर इस संकट की अभिव्यक्ति विभिन्न कवियों द्वारा की गई है। प्रस्तुत चयन में ऐसी ही कविताओं का संकलन किया गया है।

चाकरी में स्वप्न पाले कौन

कृष्ण मुरारी पहारिया

जिल्दसाज़

विनय सौरभ

नौकरी

प्रयाग शुक्ल

हमने यह देखा

रघुवीर सहाय

बेकारी

बी. गोपाल रेड्डी

हो-हो करता हुआ

प्रदीप सैनी

सरूली

महेश चंद्र पुनेठा

जीवन का दृश्य

अमर दलपुरा

कि

कुमार अम्बुज

कुछ बेरोज़गार लड़के

वंदना मिश्रा

कटे हाथ

अशोक चक्रधर

फ़िलहाल मेरे पास

विमलेश त्रिपाठी

बेरोज़गारी

कुमार अनुपम

नौकरी

मिथिलेश श्रीवास्तव

मैं प्रेम में

पंकज विश्वजीत

बेकारी के दिनों में

प्रदीप जिलवाने

अनवांटेड

निशांत

बेरोज़गारी में

प्रांजल धर

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere