बाणभट्ट के उद्धरण

बड़े लोगों की बुद्धि स्वभाव से ही स्वतंत्र और अपनी रुचि के अनुरोध पर चलने वाली होती है।
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सहस्रों माता-पिता और सैकड़ों पुत्र व पत्नियाँ युग-युग में हुए। सदैव के लिए वे किसके हुए और आप किसके हैं?

दानव हो या मानव, मुनि हो या भोले-भाले शंकर, भी सुरलोक की सुंदरियों को कटाक्ष-शृंखला से वह बंध ही जाएगा।
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महापुरुषों के गुण क्षुद्र लोगों के नीरस और निष्ठुर मनों को भी इस प्रकार खींच लेते हैं जैसे चुंबक लोहे को, फिर जो स्वभाव से ही सरस और कोमल स्वभाव के लोग हैं, उनकी तो बात ही क्या?
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समस्त प्राणियों को खा जाने वाले मृत्युदेव की भूख कभी नहीं बुझती। अनित्यता रूपी नदी अत्यंत तेज़ी से बह रही है। पंचमहाभूतों की गोष्ठियाँ क्षणिक हैं।
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संबंधित विषय : नदी
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विद्वान, विवेचक, बलवान, कुलीन, धैर्यवान, और उद्योगी मनुष्य को भी यह दुष्ट लक्ष्मी दुर्जन बना देती है।
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संबंधित विषय : मनुष्य
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महापुरुषों में ही इस तरह उदारता की अधिकता होती है जो अन्य लोगों में नहीं होतीं और जिससे वे त्रिभुवन को अपने वश में कर लेते हैं।
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पूर्व-जन्म में प्राणी जो कर्म करता है, वही उसके इस जन्म में फल देता रहता है।

जब पूर्वजन्म के बलवान शुभ या अशुभ कर्म आगे-पीछे फल देने वाले हैं ही तो बुद्धिमान को शोक करने का क्या अवसर है?
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बिना किसी के गुण-दोष की ओर ध्यान दिए परोपकार करना सज्जनों का एक व्यसन ही होता है।
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कुलीन लोग स्नेह से व्याकुल होकर भी देशकाल के अनुरूप आचार का अभिनंदन करते हैं।
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निरंतर परिवर्तित होता हुआ यह काल अनेक महापुरुषों को भी एक साथ अनादरपूर्वक गिरा देता है जैसे बड़े-बड़े पर्वतों की शेषनाग।

जो जितेंद्रिय नहीं हैं, उनके नेत्र उच्छृंखल इंद्रिय रूपी अश्वों द्वारा उठी धूल से भर जाते हैं।
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स्फटिक मणि के समान मन के निर्मल होने पर गुरु के उपदेश-गुण चंद्रकिरणों की भाँति सरलता से प्रवेश करते हैं।
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संबंधित विषय : जीवन
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विधाता के संसार में सृष्टि के उत्कृष्ट परंतु अदृष्टपूर्ण दृश्य अत्यंत धीर लोगों को भी आश्चर्यचकित कर देते हैं।
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बुद्धिमान लोग अपनी विशुद्ध बुद्धि से समस्त भली बुरी बातों को देख लेते हैं।
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संबंधित विषय : चीज़ें
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इस विशाल त्रिभुवन में ऐसा कोई प्राणी नहीं हुआ जो कामदेव के बाण का लक्ष्य हुआ नहीं है, होता नहीं है या होगा ही नहीं।
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नवीन विषय, ग्राम्यदोष का अभाव, स्वाभाविक सुंदर जाति (वर्णन-शैली), सरल श्लेष, स्फुट रस प्रतीति, गंभीर पदावली इन सबका किसी काव्य में एकत्र प्रयोग दुर्लभ होता है।
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अकारण शत्रुता करने वाले उन भयंकर दुष्टों से कौन नहीं भयभीत होगा जिनके मुख अत्यंत विषैले सर्पों के विष-भरे मुखों के समान सदा ही दुर्वचनों से भरे रहते हैं।
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बड़े लोगों के मन में जिन वस्तुओं की अभिलाषा उत्पन्न होती है, भाग्य उन्हें उपस्थित करने में देर नहीं लगाता मानो वह भी पहले से उनकी सेवा करता रहता है।
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सारे द्वीपों में जिसके गुणों की प्रशंसा होती है, रत्नसमूह का जो उपार्जन कर लेता है, ऐसा पुरुष को विधि असमय उसी प्रकार पटक देता है जैसे वायु जहाज को।
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कुलीन लोगों के साथ परस्पर वार्तालाप करना तो दूर, इनके साथ तो दृष्टि भी मिलते ही अलौकिक भूमि में पहुँचा देती है।
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संबंधित विषय : व्यक्ति
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निकट भविष्य में आने वाले आनंद को सूचना पहले से ही प्रकट होने वाले शुभ निमित्त देने लगते हैं।
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संसारी जन बड़े आलसी होते हैं जो सुलभ सौहार्द वाले महापुरुषों के मनों को जिस किसी वस्तु से नहीं ख़रीदते हैं।
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लोगों का कहना है कि दूसरों की प्राण-रक्षा से बढ़कर संसार में कोई पुण्य नहीं है।
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संबंधित विषय : संसार
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प्रभावशाली विनय से अर्पित किया हुआ मन मद्य के समान अधृष्ट जन को भी वाचाल कर देता है।
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देवों के मन सदा अपने भक्तों के अनुरोध के वश में होते हैं।
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संबंधित विषय : ईश्वर
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कड़वी बात बोलने वाले तथा मिथ्या कलंक ढूँढ़ने वाले दुष्ट जन कटुध्वनि करने वाली तथा अंगों को मलिन करने वाली बाँधने की बेड़ियों की भाँति दुःख देते हैं। सज्जन लोग अच्छी वाणी से पद-पद पर मन को वैसे ही प्रसन्न कर देते हैं, जैसे पग-पग पर मधुर ध्वनि करने वाले नूपुर।
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विषय रूपी विष के भोग से उत्पन्न मोह ऐसा विषम होता है कि वह जड़ी-बूटी और मंत्रों से नहीं उतरता।
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संबंधित विषय : आसक्ति
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सहज लज्जाशील नारियों का पहले-पहल बोलना बड़ी धृष्टता होती है, विशेषकर उनका जो वन्य मृगी की भाँति मुग्धा कुल-कुमारियाँ हैं।
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जैसे चंचल बिजली क्षण भर अपनी चमक दिखाकर वज्रपात करने लग जाती है, उसी प्रकार नियति भी पहले लोगों पर सुख की चमक दिखाती है और फिर वज्र के समान भीषण दुःख गिराने लग जाती है।
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संबंधित विषय : नियति
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