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कालिदास

कालिदास के उद्धरण

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अज्ञानवश डोंगी से सागर पार करने की इच्छा कर रहा हूँ।

वस्तुतः स्त्रियों को अपने इष्ट व्यक्ति (प्रियतम) के प्रवास से उत्पन्न दुःख अत्यंत असह्य होते हैं।

स्त्रियों में जो मनुष्य जाति से भिन्न स्त्रियाँ हैं, उनमें भी बिना शिक्षा के ही चतुरता देखी जाती है, जो ज्ञान संपन्न है, उनका तो कहना ही क्या! कोयल आकाश में उड़ने की सामर्थ्य होने तक अपने बच्चों का अन्य पक्षियों से पालन करवाती है।

निर्मल चंद्रमा पर पड़ी पृथ्वी की छाया को लोग चंद्रमा का कलंक कहकर उसे बदनाम करते हैं।

चोरी के माल के साथ पकड़ा हुआ चोर अब कह ही क्या सकता है?

जब कोई पराक्रमी अपने बल से अपने शत्रुओं को जीत लेता है तो उसका प्रणाम भी उसकी कीर्ति ही बढ़ाता है।

समुद्र के समान वह प्रतिक्षण मेरे नेत्रों को क्षण-क्षण में नया-नया-सा दिखाई पड़ रहा है।

भिन्न-भिन्न रुचि वाले लोगों के लिए प्रायः नाटक ही एक ऐसा उत्सव है जिसमें सबको एक-सा आनंद मिलता है।

स्त्रियाँ प्रत्युत्पन्नमति होती हैं।

प्रिय जनों में बँटा हुआ दुःख सह्य हो जाता है।

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अपने सामने बंधुजनों को देखकर दुःख का द्वार खुल-सा जाता है।

  • संबंधित विषय : दुख

दुष्ट व्यक्ति प्रत्यपकार से ही शांत होता है, उपकार से नहीं।

धर्म की रक्षा के लिए ही विष्णु संसार में अवतार लेते हैं।

स्त्रियों का शृंगार प्रिय के देखने पर ही सफल होता है।

जैसी होनी होती है, वैसी ही बुद्धि इंद्रियाँ भी हो जाती हैं।

विष-वृक्ष को भी स्वयं बढ़ाकर अपने ही हाथ से काटना ठीक नहीं।

अकेला व्यक्ति यदि सर्वज्ञ भी हो तो भी उसके निर्णय में दोष हो ही सकता है।

उत्कृष्ट शिष्य को दी गई शिक्षक की कला अधिक गुणवती है जैसे मेघ का जल समुद्र की सीपी में पड़ने पर मोती बन जाता है।

यदि कोई पति प्रेम के बिना केवल प्रिय वचन बोलकर ही स्त्रियों को मनाता है तो उसकी बातें उनके हृदय में उसी प्रकार नहीं जँचती हैं, जैसे कृत्रिम रंग से रंगी मणि उसके पारखी के हृदय को।

पिंड खजूर से अरुचि उत्पन्न हुए व्यक्ति को इमली की इच्छा होती है।

स्त्रियाँ स्वभाव से ही चतुर होती हैं।

अरे, इच्छित वस्तु मिल जाने पर कैसे विरोधी प्रभाव होते हैं।

पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पति की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करती हैं।

प्रायः गृहस्थ जन कन्या संबंधी बातों में अपनी पत्नियों को नेत्र मानकर कार्य करते हैं।

बड़े लोगों से प्राप्त सम्मान अपने गुणों में विश्वास उत्पन्न कर देता है।

विद्वान लोग भी आवेग से अंधे होने पर कुपथ में पैर धर ही देते हैं।।

  • संबंधित विषय : राह

जो महापुरुषों की निंदा करता है, वही नहीं, अपितु जो उस निंदा को सुनता है, वह भी पाप का भागी होता है।

हे देवी! ख़ान से निकले हुए सर्वोत्तम रत्न को भी सोने में जड़ने की आवश्यकता तो पड़ती ही है।

मनोरथों की गति से बाहर कुछ भी नहीं है।

अभीष्ट वस्तु के लिए मन के स्थिर निश्चय को और नीचे की ओर जाने वाले जल के प्रवाह को कौन रोक सकता है?

गुरुजनों की आज्ञा पर तर्क-वितर्क नहीं करना चाहिए।

जब तक विद्वान संतुष्ट हो जाएँ तब तक मैं अपने अभिनय कौशल को सफल नहीं समझता।

पत्नी पर पति की सब प्रकार की प्रभुता उचित है।

विशेष रूप से शिक्षितों का भी चित्त अपने विषय में अविश्वासयुक्त ही होता है।

निश्चय ही धार्मिक क्रियाओं में श्रेष्ठ पत्नी मुख्य साधन होती है।

वृक्ष फलों के उत्पन्न होने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे को दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियाँ पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है।

  • संबंधित विषय : पेड़

परस्त्री की ओर ध्यान से देखना उचित नहीं है।

लोकापवाद बलवान होता है।

मनोरथों की परिधि से बाहर कुछ भी नहीं है।

परस्त्री के विषय में बात करना अशिष्टता है।

दुःखियों का दुःख शांत करना ही उत्तम लोगों की संपत्ति का एकमात्र फल है।

सोने की शुद्धि या मिलावट अग्नि में ही देखी जाती है।

ठीक समय पर प्रारंभ की गई नीतियाँ अवश्य ही फल प्रदान करती हैं।

  • संबंधित विषय : समय

होनहार प्रबल होती है।

भला नगर के होते हुए रत्न की परख गाँव में की जाती है?

अवश्यंभावी घटनाओं के लिए सर्वत्र ही द्वार (मार्ग) हो जाते हैं।

अवश्य ही मैंने चंदन से खड़ाऊँ का काम लेकर बड़ा पाप किया है।

तपाये जाने पर लोहा भी गरम हो जाता है, शरीरधारियों की तो बात ही क्या।

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