
हमारी पीढ़ी ऐसे समय में और ऐसे देश में पैदा हुई है जब कि प्रत्येक उदार एवं सच्चे हृदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई है कि वह अपने लिए उस मार्ग को चुने, जो आहों, सिसकियों और जुदाई के बीच में गुज़रता है। यही मार्ग कर्म का मार्ग है।

सत्, चित् और आनंद-ब्रह्म के इन तीन स्वरूपों में से काव्य और भक्तिमार्ग 'आनंद' स्वरूप को लेकर चले। विचार करने पर लोक में इस आनंद की दो अवस्थाएँ पाई जाएँगी—साधनावस्था और सिद्धावस्था।

मनुष्य प्रभु को पाने का मार्ग है, और जो मंज़िल को छोड़ मार्ग से ही संतुष्ट हो जावें, उनके दुर्भाग्य को क्या कहें?

यह कहना कि जब सब करेंगे तब हम करेंगे, न करने का बहाना है। हमें ठीक लगता है, इसलिए हम करें, जब दूसरों को ठीक लगेगा, तब वे करेंगे —यही करने का मार्ग है।

हमें कठिनाइयों को मानना चाहिए, उनका विश्लेषण करना चाहिए और उनके विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए। जगत में सीधे मार्ग कहीं नहीं हैं, हमें टेढ़े-मेढ़े मार्ग तय करने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा मुफ़्त में सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।

जो ईश्वर के वाक्यों पर विश्वास करता है उसके लिए भगवान स्वयं पथ-प्रदर्शक बन कर आता है।

ज्ञान, उपासना और कर्म—ईश्वर प्राप्ति के तीन अलग मार्ग नहीं हैं, बल्कि ये तीनों मिलकर एक मार्ग हैं। उसके तीन भाग सुविधा के लिए कर दिए गए हैं।

यह कैसे हो सकता है कि कोई अपना रास्ता चुने भी, और उस पर अकेला भी न हो। राजमार्ग पर चलने वाले रास्ता नहीं चुनते; रास्ता उन्हें चुनता है।


प्रभु के द्वार पर हमारे ‘मैं’का ताला है। जो उसे तोड़ देते है, वे पाते हैं कि द्वार तो सदा से ही खुले थे।

जीवन एक लंबी राह!

किसी लकीर को मिटाए बिना छोटी बना देने का उपाय है, बड़ी लकीर खींच देना। क्षुद्र अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए तर्क और शास्त्रार्थ का मार्ग कदाचित् ठीक नहीं है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere