लोक पर गीत

लोक का कोशगत अर्थ—जगत

या संसार है और इसी अभिप्राय में लोक-परलोक की अवधारणाएँ विकसित हुई हैं। समाज और साहित्य के प्रसंग में सामान्यतः लोक और लोक-जीवन का प्रयोग साधारण लोगों और उनके आचार-विचार, रहन-सहन, मत और आस्था आदि के निरूपण के लिए किया जाता है। प्रस्तुत चयन में लोक विषयक कविताओं का एक विशेष और व्यापक संकलन किया गया है।

चंदा आधी रात का

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

वही मोरा गाँव

अन्नू रिज़वी

बदरा

अन्नू रिज़वी

पहले हमें नदी का सपना

विनोद श्रीवास्तव

अबूझ पहेली

विनम्र सेन सिंह

बहुत देर से सोकर जागी

कुमार विश्वास

मेरा घर आँगन

विनम्र सेन सिंह

बैल बिना घर जिसका टूटा

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

धूप हल्दिया छाँव काजली

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

आमों में बौर आ गए

देवेंद्र कुमार बंगाली

फागुन का रथ

देवेंद्र कुमार बंगाली

अगहन

देवेंद्र कुमार बंगाली

नदिया रस्ता भूल गई

अन्नू रिज़वी

ईमा

देवेंद्र कुमार बंगाली

बंजर ही बंजर था

विनोद श्रीवास्तव

चंद्रमा

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

तुम्हारे नाम

देवेंद्र कुमार बंगाली

साँकल को खनकाता कोई

विनोद श्रीवास्तव

गाँव की पहाड़ी

देवेंद्र कुमार बंगाली

दिन का सेहरा

देवेंद्र कुमार बंगाली

भीग गई धरती शरम से

अन्नू रिज़वी

बदरिया

अन्नू रिज़वी

बाग़ों में टहलता अँधेरा

देवेंद्र कुमार बंगाली

बौरों के दिन

देवेंद्र कुमार बंगाली

सूरज ओ!

देवेंद्र कुमार बंगाली

लो आए मक्का में दाने

देवेंद्र कुमार बंगाली

यह अकाल इंद्र-धनुष

देवेंद्र कुमार बंगाली

नवनिर्गुण : सुगना

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

ऐसे वैसे, कैसे-कैसे

देवेंद्र कुमार बंगाली

कुछ कहे तो कहे क्या

देवेंद्र कुमार बंगाली

फूली है मटर

देवेंद्र कुमार बंगाली

जन देवता

शंभुनाथ सिंह

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere