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लोक पर नवगीत

लोक का कोशगत अर्थ—जगत

या संसार है और इसी अभिप्राय में लोक-परलोक की अवधारणाएँ विकसित हुई हैं। समाज और साहित्य के प्रसंग में सामान्यतः लोक और लोक-जीवन का प्रयोग साधारण लोगों और उनके आचार-विचार, रहन-सहन, मत और आस्था आदि के निरूपण के लिए किया जाता है। प्रस्तुत चयन में लोक विषयक कविताओं का एक विशेष और व्यापक संकलन किया गया है।

दर्पण दरक गया

राम निहोर तिवारी

दिन का अंत हुआ

राम निहोर तिवारी

बाहुबली महुआ

राम निहोर तिवारी

अभिशप्त

शंभुनाथ सिंह

तन हुए शहर के

सोम ठाकुर

डालो मत डोरे

उमाकांत मालवीय

कभी-कभी

उमाकांत मालवीय

आदिम अंधकार का गीत

देवेंद्र शर्मा इंद्र

मेरे घर के पीछे

ठाकुरप्रसाद सिंह

देखेगा कौन

शंभुनाथ सिंह

कब से तुम गा रहे

ठाकुरप्रसाद सिंह

मादर ना बजा

ठाकुरप्रसाद सिंह

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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