ऊब पर कविताएँ

ऊब एक मनोभाव है जो बोरियत,

उदासी, खिन्नता, एकरसता से उपजी बेचैनी का अर्थ देती है। कवि की ऊब कविता की संभावना भी हो सकती है।

लयताल

कैलाश वाजपेयी

आत्म-मृत्यु

प्रियंका दुबे

अगले सबेरे

विष्णु खरे

उदाहरण के लिए

नरेंद्र जैन

थकन

सारुल बागला

बेईमानी

अर्पिता राठौर

कठ-करेज समय

रूपम मिश्र

हुनर

सारुल बागला

रसबोध

मलयज

सुखी आदमी की दिनचर्या

अरविंद चतुर्वेद

ऊब के बचाव में

मोनिका कुमार

ऊब

पूनम सोनछात्रा

रोज़मर्रा

सुधांशु फ़िरदौस

नदियाँ

सौरभ अनंत

फिर भी

हरि मृदुल

घर के भीतर

स्वप्निल श्रीवास्तव

फ़ुरसत भरे इतवार

अनिमेष मुखर्जी

अपने घर पर रहें

पंकज चतुर्वेदी

सुबह की शुरुआत

अनुपम सिंह

तुम आधे हो

जतिन एंड विंग्स

दिन

राम जन्म पाठक

हो सकता था

नवीन सागर

थक कर मन मेरा

शचींद्र आर्य

दफ़्तर में धूप

राजेंद्र शर्मा

ऊब के नीले पहाड़

लीना मल्होत्रा राव

यह भी अच्छा हुआ

नरेंद्र जैन

अबींद्रनाथ आएँगे

जोशना बैनर्जी आडवानी

नहीं रहे दिन रंग-रूप-रस पान के

कृष्ण मुरारी पहारिया

चूक जाने पर-9

सोमेश शुक्ल

पार्क में बूढ़े

निरंजन श्रोत्रिय

अर्थ

गंगा प्रसाद विमल

रास्ता ही रास्ता

शीला सिद्धांतकर

लोग

शैलेंद्र साहू

ऊब

गुंजन उपाध्याय पाठक

इतिहास का सत्य

जगदीश चतुर्वेदी

रहते हुए

प्रमोद बेड़िया

दिखना

स्वप्निल श्रीवास्तव

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere