धूप पर कविताएँ

धूप अपनी उज्ज्वलता और

पीलेपन में कल्पनाओं को दृश्य सौंपती है। इतना भर ही नहीं, धूप-छाँव को कवि-लेखक-मनुष्य जीवन-प्रसंगों का रूपक मानते हैं और इसलिए क़तई आश्चर्यजनक नहीं कि भाषा विभिन्न प्रयोजनों से इनका उपयोग करना जानती रही है।

अब लौटें

उदय प्रकाश

पहली बारिश

सुधांशु फ़िरदौस

जब पीले ने कहा

राजेश सकलानी

धूप सुंदर

त्रिलोचन

धूप को ढोकर

मनप्रसाद सुब्बा

एक धूप एक नदी

नरेंद्र जैन

धूप का स्टिकर

शक्ति महांति

संगत

नंदकिशोर आचार्य

जाड़े की गुनगुनी धूप

विंदा करंदीकर

धूप

सुमित त्रिपाठी

संधान

साैमित्र मोहन

धूप की सतरें

हरीश भादानी

धूप

केदारनाथ अग्रवाल

एक खिले फूल से

केदारनाथ अग्रवाल

जेठ

सुधीर रंजन सिंह

धूप

अजेय

धूप का गीत

केदारनाथ अग्रवाल

धूप का पंख

सुशोभित

धूप तो हमेशा रहती है

अजीत रायज़ादा

धूप की क़िस्में

राधावल्लभ त्रिपाठी

दफ़्तर में धूप

राजेंद्र शर्मा

मई का एक दिन

अरुण कमल

धूप में भाई

प्रयाग शुक्ल

धूप में एक रविवार

सुंदर चंद ठाकुर

चम्बा की धूप

कुमार विकल

धोबी

मोहन राणा

धूप से प्यार हो

मनोहर श्याम जोशी

धूप के समर्थन में

शिरीष कुमार मौर्य

मध्यांतर के बाद

आशुतोष दुबे

जड़ता

कीर्ति चौधरी

घनी घाम में

मोना गुलाटी

चिंदी-चिंदी धूप

अतुलवीर अरोड़ा

अभ्र की धूप

अनिल जनविजय

धूप और मेरे बीच

संजीव मिश्र

धूप-तरी

जानकीवल्लभ शास्त्री

धूप का पत्ता

शंभु यादव

दीवार पर धूप

तरुण भटनागर

धूप

गिरधर राठी

नीली धूप

वसु गंधर्व

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere