आवाज़ पर उद्धरण
वाणी, ध्वनि, बोल, पुकार,
आह्वान, प्रतिरोध, अभिव्यक्ति, माँग, शोर... अपने तमाम आशयों में आवाज़ उस मूल तत्त्व की ओर ले जाती है जो कविता की ज़मीन है और उसका उत्स भी।

दूसरों की राय और उन आवाज़ों की परवाह न करें। अपने लिए धरती पर सबसे कठिन काम करें। अपने लिए काम करें। सच्चाई का सामना करें।

अगर तुम्हारे भीतर से एक आवाज़ आती है कि तुम चित्र नहीं बना सकते, तब किसी भी तरह से तुम्हें चित्र बनाने चाहिए; और फिर वह आवाज़ शांत हो जाएगी।

पूजा या प्रार्थना वाणी से नहीं, हृदय से करने की चीज़ है।


एक कीड़ा होता है—अँखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक़्त बोलता है—भनु-भनु-भन्! क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज़ उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है।

मुझसे पहले की पीढ़ी में जो अक़्लमंद थे, वे गूँगे थे। जो वाचाल थे, वे अक़्लमंद नहीं थे।


आपको अपने सिवा किसी पर भी विश्वास नहीं करना है। आपको भीतर की आवाज़ सुनने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन यदि आप उसके लिए भीतर की आवाज़ शब्द प्रयुक्त न करना चाहें तो आप 'विवेक का आदेश' शब्द प्रयुक्त कर सकते हैं। और यदि आप ईश्वर को प्रदर्शित नहीं करते हैं तो मुझे इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है कि आप किसी और चीज़ को प्रदर्शित करेंगे जो अंत में ईश्वर सिद्ध होगी, क्योंकि सौभाग्य से इस संसार में ईश्वर के सिवा कुछ और है ही नहीं।

वाणी से राम नाम लेते हुए यदि मन विषय की ओर दौड़े तो इसे भगवान का स्मरण नहीं वरन् विस्मरण समझना चाहिए।

ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिसमें सब प्राणियों के प्रति स्नेह भरा हो तथा जो सुनते समय कानों को सुखद जान पड़े। दूसरों को पीड़ा देना, मारना और कटु वचन सुनाना ये सब गहित कर्म हैं।

कामधेनु गाय के समान मधुर वाणी किस अनर्थ को नहीं टाल देती है? वह लक्ष्मी का पोषण करती है, कीर्ति को बढ़ाती है, पाप को नष्ट करती है, विरोधियों का भी मित्र बना देती है और पद-पद पर शुद्ध मन के अनुकूल मान से चलती है।

यदि आपका कोई नैतिक संदेश है तो कविता में उसे अंतर्निहित होना चाहिए, मुखर नहीं।

कोयल के कूकने और गेट के भीतर अख़बार के गिरने की आवाज़ एक साथ आए तो सबसे पहले क्या—कान या आँख?

वह इस डर से बोलता रहता है कि चुप हुआ तो फिर शायद उसे भी यह याद न आए कि कभी उसके पास भी एक आवाज़ हुआ करती थी।

स्वर का गीत मीठा है सही, किंतु हृदय का गीत ही तो ईश्वर की सच्ची आवाज़ है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere