भीड़ पर उद्धरण

किसी जगह एकत्र लोगों

के तरतीब-बेतरतीब समूह को भीड़ कहा जाता है। भीड़ का मनोविज्ञान सामाजिक मनोविज्ञान के अंतर्गत एक प्रमुख अध्ययन-विषय रहा है। औपचारिक-अनौपचारिक भीड़, तमाशाई, उग्र भीड़, अभिव्यंजक भीड़, पलायनवादी भीड़, प्रदर्शनकर्त्ता आदि विभिन्न भीड़-रूपों पर विचार किया गया है। इस चयन में भीड़ और भीड़ की मानसिकता के विभिन्न संदर्भों की टेक से बात करती कविताओं का संकलन किया गया है।

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लोग हमेशा वही नहीं चाहते जो उनके लिए हितकर हो।

कुँवर नारायण
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इस सभ्यता में पैदल आदमियों के संगठित समूह की कल्पना नहीं, भीड़ की कल्पना है।

रघुवीर सहाय
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भीड़ में जब नया आदमी शामिल हो तो पहले से खड़े लोगों को वह बुरा लगता है।

स्वदेश दीपक
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परिश्रम आदमी को भीड़ बनने, और प्रतिभा भीड़ में खो जाने की इजाज़त नहीं देती।

राजकमल चौधरी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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