पृथ्वी पर नवगीत

पृथ्वी, दुनिया, जगत।

हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

यही बेहतर

रमेश रंजक

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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