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क्षेमेंद्र

990 - 1070 | जम्मू कश्मीर

11वीं सदी के समादृत संस्कृत कवि, नाटककार, इतिहासकार, विचारक और आचार्य।

11वीं सदी के समादृत संस्कृत कवि, नाटककार, इतिहासकार, विचारक और आचार्य।

क्षेमेंद्र के उद्धरण

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संसार में शरीरधारियों की दरिद्रता ही मृत्यु है और ही आयु है।

स्त्रियाँ मनुष्यों को जन्म देने वाली किंतु प्राणों को हरने वाली भी हैं। ये भीरु स्वभाव वाली भी हैं तथा अग्नि में भी प्रवेश कर सकती हैं। ये अत्यंत कठोर भी हैं, साथ ही पल्लव के समान कोमल अंगों वाली भी हैं। वे सहज ही मुग्ध हो जाने वाली हैं किंतु विदग्ध जनों को ठग भी सकती हैं।

नीच पुरुष लाभ के उद्देश्य से प्रेम करते हैं। मनस्वी पुरुष मान के अभिलाषी होते हैं।

सज्जन पुरुष धर्म के लिए ही प्रयत्नपूर्वक धन-संग्रह करते हैं।

धन जीवन का सवोपरि साधन है अतः उसका नाश जीवन की हानि है।

वेग के साथ घूमती हुई, चक्र का भ्रम उत्पन्न करने वाली काल-गति देखी नहीं जाती। कल जो शिशु था, आज वही पूर्ण युवा है और कल प्रात: वही जरा-जीर्ण शरीर वाला हो जाएगा।

कुल, धन, ज्ञान, रूप, पराक्रम, दान और तप- ये सात मुख्य रूप से मनुष्यों के अभिमान के हेतु हैं।

द्वेष से किसमें दोष नहीं जाता? प्रेम से किसकी उन्नति नहीं होती? अभिमान से किसका पतन नहीं हो सकता? नम्रता से किसकी उन्नति नहीं हो सकती?

जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।

प्रायः बुद्धिमान ही उपदेश के योग्य होते हैं, मूर्ख नहीं।

निर्धन भी सुखी देखे जाते हैं तथा धनवान भी अधिक दुखी। मनुष्य के सुख और दुःख का उदय भाग्य के अधीन है, अतः धन से क्या?

पतित अथवा पथभ्रष्ट होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुनः उठ जाता हैं, किंतु मूर्खबुद्धि नहीं।

जो वेद-ज्ञान से रहित है, वही अंधा है। जो याचक के निरर्थक लिए है, वही शठ है। जो यश-विहीन है, वही मृतक है। जिसकी बुद्धि धर्म में नहीं है, वही शोचनीय है।

सज्जनों की निंदा करने में दुष्ट सब ओर से आँख, कान, सिर मुख वाला होता है और सर्वत्र व्याप्त भी होता है।

विवेकरहित लोगों को सज्जनों की वाणी अर्थहीन लगती है।

दूसरों को उपदेश देने में सभी विद्वान होते हैं।

दुःख-सुख में समान रहने वाले बंधु ही वास्तविक बांधव हैं। जो विपत्ति के समय मुँह मोड़ें वे तो यमदूत हीं हैं।

जो अभिमानी है, आदर के योग्य नहीं है, उचितानुचित के विवेक से रहित है, अप्रिय वक्ता है, दुःख और अपमान से संकुचित हो रहा है ऐसे व्यक्तियों से अत्यंत गुणी मनुष्य संभाषण नहीं करते।

कुल-संबंध अस्थिर है, विद्या सदा ही विवादपूर्ण है, और धन क्षण में ही नष्ट हो जाने वाला है, अत: इन मोहजनक वस्तुओं पर अभिमान मिथ्या ही है।

अतः बुद्धिमान मनुष्य को, संसार में फैले हुए मोह रूपी बादल में यह रूप निश्चय ही बिजली की कौंध के समान है- ऐसा विचार करके आश्चर्यपूर्ण सौंदर्य-विलास का अभिमान नहीं करना चाहिए।

ज़रा से जीर्ण रूपों को, रोग से क्षीण शरीरों को और काल से ग्रस्त आयु को देखकर किसे अभिमान हो सकता है!

दर्शनीय लोग अति पुण्य से ही दृष्टिगोचर होते हैं।

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