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विलियम शेक्सपियर

1564 - 1616

संसारप्रसिद्ध अँग्रेज़ी नाटककार, कवि और कलाकार।

संसारप्रसिद्ध अँग्रेज़ी नाटककार, कवि और कलाकार।

विलियम शेक्सपियर के उद्धरण

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अंतःकरण हम सबको कायर बना देता है।

अंतःकरण तो कायरों द्वारा प्रयुक्त शब्दमात्र है, सर्व-प्रथम इसकी रचना शक्तिशालियों को भयभीत रखने के लिए हुई थी।

संसार भर में कहाँ है नारी के नेत्र के समान सौंदर्य सिखाने वाला अन्य लेखक?

हमारा जीवन मनुष्यों के संपर्क से मुक्त होकर वृक्षों में वाणी, गतिशील सरिताओं में पुस्तकें, शिलाओं में सदुपदेश तथा प्रत्येक वस्तु में अच्छाई का दर्शन करने लगता है।

अज्ञान भगवान का शाप है।

हत्यारों को क्षमा करके दया हत्या ही करती है।

स्त्रियों के लिए किसी मंत्रणा को छिपाकर रखना कितना दुष्कर है!

क्या तुम नहीं जानते कि मैं औरत हूँ? जब मैं सोचती हूँ तो बोलूँगी ही।

चंचलता! तेरा ही नाम नारी है।

स्त्री को कौन समझ सकता है।

हम ऐसी सामग्री से बने हैं, जिसके स्वप्न बने होते हैं और हमारे लघु जीवन का अंत निद्रा से होता है।

शोभा, शासन, राज्य, मिट्टी और धूल के अतिरिक्त क्या हैं? और हम चाहे जैसे जीवित रहें, अंत में मरना तो पड़ेगा ही।

जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए; जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए;

नाम में क्या रखा है? गुलाब के पुष्प को किसी और नाम से पुकारने पर भी उसकी गंध तो उतनी ही मधुर होगी।

कार्यालय एवं प्रेम के मामलों को छोड़कर अन्य सभी बातों में मित्रता स्थिर रहती है। अतः प्रेम में सभी हृदय अपनी भाषा को प्रयोग करते हैं। हर नेत्र स्वयं बात करे और किसी माध्यम पर विश्वास करे।

बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुःखों के लिए रोया नहीं करते, अपितु वर्तमान में दुःख के कारणों को रोका करते हैं।

गर्व का पतन निश्चित है।

कवि लिखने के लिए तब तक लेखनी का प्रयोग नहीं करता जब तक उसकी स्याही प्रेम की आहों से कोमल बना दी गई हो।

दुर्बलतम शरीरों में अहंकार प्रबलतम होता है।

दुःखी व्यक्तियों के पास आशा ही एकमात्र औषधि होती है।

वे (नारी-नेत्र) ही वे पुस्तकें, कलाएँ और शिक्षापीठ हैं जो समस्त संसार को प्रकट करते हैं, रखते और पोषित करते हैं।

मेरे स्वामी! पुरुष या स्त्री का यश ही उनकीआत्माओं की जीवनवाणी है। जो मेरा धन चुराता है, वह केवल कचरा चुराता है, धन तो कुछ नहीं है, वह मेरा था, अब उसका है और हज़ारों का दास रह चुका है। परंतु जो मुझसे मेरा यश छीनता है, वह मुझे ऐसी वस्तु से वंचित करता है जिससे वह स्वयं तो धनवान नहीं बनता परंतु मैं वास्तव में दरिद्र बन जाता हूँ।

तो ऋण माँगने वाले बनो, देने वाले, क्योंकि प्रायः ऋण अपने को और मित्र दोनों को खो देता है और ऋण माँगना, मितव्ययिता के स्वभाव को शिथिल कर देता है।

प्रत्येक व्यक्ति की बात सुनो परंतु किसी से भी कुछ मत कहो। प्रत्येक व्यक्ति द्वारा निंदा सुन लो पर अपना निर्णय सुरक्षित रखो।

प्रत्येक वृद्ध व्यक्ति के नेत्र में चिंता जागती रहती है और जहाँ चिंता रहती है वहाँ निद्रा कभी नहीं आएगी।

विपत्तियों का मधुर दुग्ध - दर्शनशास्त्र।

कायर लोग अपनी मृत्यु से पूर्व बहुत बार मरते हैं किंतु वीर केवल एक बार ही मृत्यु का स्वाद लेते हैं।

कर्म को वचन के अनुरूप और वचन को कर्म के अनुरूप बनाओ।

अभिमानी व्यक्ति स्वयं को ही खा जाता है।

सत्कार्य के लिए मरने वाला कीर्ति-काया में जीता है।

मनुष्य की इच्छा उसके विवेक के द्वारा नियंत्रित होती है।

पशुओं को अपने मित्रों की पहचान करना प्रकृति सिखाती है।

पीड़ित आत्मा को उल्लास प्रभावित नहीं कर सकता।

आनंद को दूसरों की आँखों से देखना कितना दुःखद है!

महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति का सारतत्त्व ही एक स्वप्न की छाया मात्र है।

आशा ही प्रेमी का सहारा है।

अभी भी स्वर्ग सर्वोपरि है, वहाँ एक न्यायाधीश विराजमान है जिसे कोई भी राजा भ्रष्ट नहीं कर सकता।

कर्म स्वयं वाक्पटुता है।

देवियों, आहें मत भरो। पुरुष सदैव ही धोखेबाज़ रहे है। इनका एक पैर समुद्र में रहता है और एक तट पर। यह किसी एक वस्तु के प्रति निष्ठावान नहीं रहे।

सभी मनुष्यों के चेहरे सत्य होते हैं— चाहे उनके हाथ कैसे भी हों।

अस्तित्व और अनस्तित्व—यही तो प्रश्न है।

शुचिता निर्भीक होती है और भलाई कभी नहीं डरती।

आवश्यकता के समान कोई गुण नहीं है।

मेरे पूर्वजों से परंपरा प्राप्त मेरा पातिव्रत्य हमारे घर का रत्न है।

एक दैवी शक्ति है जो हमारे अंतों को रूपायित करती है।

मनुष्य की अपेक्षा फ़ैशन ही वस्त्रों को अधिक छिजा देता है।

उसका कपोल जीर्ण दिवसों का मानचित्र है।

तुम बर्फ़ के समान विशुद्ध रहो और हिम के समान पवित्र, तो भी लोकनिंदा से नहीं बचोगे।

मौन आनंद का पूर्ण अग्रदूत है। आनंदमय नहीं हूँ यदि मैं बता सकूँ कि कितना आनंदित हूँ।

मधुर दया आभिजात्य का सच्चा चिह्न है।

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