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इंद्रियाँ पर उद्धरण

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इंद्रियाँ, मन और बुद्धि इस (कामभाव) के वास-स्थान कहे जाते हैं। इनके द्वारा ज्ञान को आच्छादित करके यह जीवात्मा को मोहित करता है।

वेदव्यास
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स्वप्न के समान सारहीन तथा सबके द्वारा उपभोग्य कामसुख से अपने चंचल मन को रोको, क्योंकि जैसे वायु प्रेरित अग्नि की हव्य पदार्थों से तृप्ति नहीं होती, वैसे ही लोगों को कामोपभोग से कभी तृप्ति नहीं होती।

अश्वघोष
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कामभोगों से कभी तृप्ति नहीं होती, जैसे जलती अग्नि की आहुतियों से तृप्ति नहीं होती। जैसे-जैसे कामसुखों में प्रवृत्ति होती जाती है, वैसे-वैसे विषय-भोगों की इच्छा बढ़ती जाती है।

अश्वघोष
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उपन्यासों का प्रेम इंद्रियों पर भावना की वरीयता है।

राल्फ़ वाल्डो इमर्सन

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere