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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

11 सितम्बर 2025

‘भारत भवन और ‘अँधेरे में’ मुक्तिबोध की पांडुलिपियाँ’

‘भारत भवन और ‘अँधेरे में’ मुक्तिबोध की पांडुलिपियाँ’

जब हमने तय किया कि भारत भवन जाएँगे तो दिन शाम की कगार पर पहुँच चुका था। ऊँचे किनारे पर पहुँचकर सूरज को अब ताल में ढलना था। महीना मई का था, लिहाज़ा आबोहवा गर्म थी। शनिवार होने के बावजूद लोगों की उपस्थि

10 सितम्बर 2025

ज़ेन ज़ी का पॉलिटिकल एडवेंचर : नागरिक होने का स्वाद

ज़ेन ज़ी का पॉलिटिकल एडवेंचर : नागरिक होने का स्वाद

जय हो! जग में चले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को। जिस नर में भी बसे हमारा नाम, तेज को, बल को। —दिनकर, रश्मिरथी | प्रथम सर्ग ज़ेन ज़ी, यानी 13-28 साल की वह पीढ़ी, जो अब तक मीम, चुटकुलों और रीलों में

09 सितम्बर 2025

कहानी : लील

कहानी : लील

‘लील’—एक प्रादेशिक हिंदू रिवाज है, जो अधिकतर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र प्रदेश में देखने को मिलता है। इस रिवाज के अनुसार अगर किसी पुरुष का विवाह ना हुआ हो और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसकी वासनापूर्ति और

08 सितम्बर 2025

ऋषिकेश : नदी के नगर का नागरिक होना

ऋषिकेश : नदी के नगर का नागरिक होना

शहर हम में उतने ही होते हैं, जितने हम शहर में होते हैं। ऋषिकेश मेरे लिए वक़्त का एक हिस्सा है। इसकी सड़कों, गलियों, घाटों और मंदिरों को थोड़ा जिया है। जीते हुए जो महसूस होता है, वही तो जीवन का अनुभव

07 सितम्बर 2025

बिंदुघाटी : गुदरिया गले में डारे भरथरी

बिंदुघाटी : गुदरिया गले में डारे भरथरी

• किंवदंतियों, जनश्रुतियों और विद्वानों के विवरणों में विशद उपस्थिति रखने वाले भर्तृहरि राजा थे या ऋषि! कवि थे या वैयाकरण! योगी थे या भोगजीवी सांसारिक... या फिर इन सबको समाहित किए पूरी भारतीय मनीषा म

06 सितम्बर 2025

शब्दचित्र : रेखा चाची और मेरी माँ

शब्दचित्र : रेखा चाची और मेरी माँ

आरुष मिश्र, सरदार पटेल विद्यालय, नई दिल्ली में कक्षा दसवीं में पढ़ने वाले किशोर हैं। पिछले वर्ष जब वह कक्षा नवीं में थे तो गर्मी की छुट्टियों में उनकी कक्षा को हिंदी विषय में एक कार्य मिला था। उसमें

05 सितम्बर 2025

अपने माट्साब को पीटने का सपना!

अपने माट्साब को पीटने का सपना!

इस महादेश में हर दिन एक दिवस आता रहता है। मेरी मातृभाषा में ‘दिन’ का अर्थ ख़र्च से भी लिया जाता रहा है। मसलन आज फ़लाँ का दिन है। मतलब उसका बारहवाँ। एक दफ़े हमारे एक साथी ने प्रभात-वेला में पिता को जाकर

04 सितम्बर 2025

कुत्ते आदमी की तरह नहीं रोते थे, आदमी ही कुत्तों की तरह रोते थे

कुत्ते आदमी की तरह नहीं रोते थे, आदमी ही कुत्तों की तरह रोते थे

मैं बस में बैठा देख रहा था कि सारे लोग धीरे-धीरे जाग रहे थे। बड़ी अदालत ने राजधानी की सड़कों पर से आवारा कुत्तों को शहर से हटाने का फ़रमान जारी किया था। कितनी अजीब बात थी, कई महीनों से पुलिस इसी शहर

03 सितम्बर 2025

व्यंग्य : कुत्ते और कुत्ते

व्यंग्य : कुत्ते और कुत्ते

बाज़ार में आजकल हिंदुस्तानी-अँग्रेज़ी में लिखी हुई बहुत-सी किताबें आ गई हैं जो कुत्तों के—असली कुत्तों के—बारे में हैं। ‘डॉग केयर बाई ए डाग-लवर’, ‘शेफ़र्ड डाग्स ऑफ़ जर्मनी, बाई ए डॉग-लवर’, ‘ऑफ़ डाग्स

02 सितम्बर 2025

समीक्षा : मृत्यु अंत है, लेकिन आश्वस्ति भी

समीक्षा : मृत्यु अंत है, लेकिन आश्वस्ति भी

मृत्यु ऐसी स्थिति है, जिसका प्रामाणिक अनुभव कभी कोई लिख ही नहीं सकता; लेकिन इस कष्टदायी अमूर्तता के स्वरूप, दृश्य और प्रभाव को वरिष्ठ कवि अरुण देव ने पूरी सफलता के साथ काव्य शैली में ढाल दिया है। ‘मृ

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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