साहित्य और संस्कृति की घड़ी
गए दिनों अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई एक वेब सीरीज़—‘दुपहिया’। सोशल मीडिया में इस सीरीज़ को लेकर ख़ासी चर्चा हो रही है। काल्पनिक बिहार में काल्पनिक रूप से अपराधमुक्त काल्पनिक गाँव धड़कपुर पर आधार
01 अप्रैल 2025
उनका पूरा नाम विश्वनाथ शर्मा ‘विमलेश’ था। ‘विमलेश राजस्थानी’ भी उन्हें कहा जाता था और कवियों के बीच वह विमलेशजी के नाम से मशहूर थे। विमलेशजी की चार लाइनों और उनके पढ़ने की नक़ल करने वाले सुरेंद्र शर
• गत ‘रविवासरीय’ पढ़कर मेरे बचपन के दोस्त अनूप सोनकर ने कानपुर से मुझे फ़ोन पर एक कहानी सुनाई। उसे भी नहीं पता कि यह कहानी उसने कहाँ से अपने ज़ेहन में उतारी और मुझे भी यह अनसुनी-अनपढ़ी लगी! आइए इसे पढ़ते
रहना यहीं था—इसी समाज में, घर के भीतर, घर के बाहर। घर भीतर ढूँढ़ते हुए अब, सब इधर-उधर था। कोई याद अपनी जगह पर नहीं मिल रही है इस जगह। अभी तो रहना है, यह सोचकर यादों को तरतीब देने का मन बना लिया।
ख़ालिद जावेद के उपन्यास ‘नेमत ख़ाना’ से गुज़रते हुए गाहे-ब-गाहे यह महसूस होता है कि निःसंदेह तमाम दुनिया पेट की दौड़ है—इससे ज़्यादा कुछ नहीं, इससे कम कुछ नहीं। आपके अंतर् से पारदर्शी परिचय करवाते इस
प्रत्येक समाज और व्यक्ति के अपने सच होते हैं। ये सच किसी-न-किसी माध्यम से अभिव्यक्ति पाते हैं। किताबें किसी व्यक्ति या समाज के अनदेखे सच की अभिव्यक्ति का अनूठा माध्यम हैं। एक ऐसी ही पुस्तक है—महाब्रा
मैं अक्सर सोचती हूँ कि हम सब कितनी सारी चीज़ों से घिरे हैं। एक वयस्क के रूप में जीवन और दुनिया को देखते हुए ऊब गए हैं। अक्सर अपनी ऊब, अपनी चालाकियाँ और कुंठाएँ जाने-अनजाने हम बच्चों तक प्रेषित कर देते
साल 2006 में प्रकाशित ‘एक कहानी यह भी’ मन्नू भंडारी की प्रसिद्ध आत्मकथा है, लेकिन मन्नू भंडारी इसे आत्मकथा नहीं मानती थीं। वह अपनी आत्मकथा के स्पष्टीकरण में स्पष्ट तौर पर लिखती हैं—‘‘यह मेरी आत्मकथा
दिन के बाद दिन आते गए और रात के बाद रात। सारा जीवन इकसार और नीरस-सा लगने लगा। इस दुख को हँसकर टालने के अलावा दूसरा कोई रास्ता भी न था। रात के अकेलेपन को काटने के लिए फ़ोन की स्क्रीन को बेहिसाब स्क्रॉ
समादृत कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए गए हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। वर्ष 1961 में इस पुरस्कार की स्थापना ह