साहित्य और संस्कृति की घड़ी
कई दिनों की लगातार बारिश के बाद मेरे घर के आँगन में यहाँ-वहाँ बारिश का साफ़ पानी तरह-तरह के आकारों में बैठ गया है। आँगन में बने पानी के इन आकारों में पानी का एकांत बैठ गया है। पानी का सौंदर्य, पानी का
बहुत पहले जब विनोद कुमार शुक्ल (विकुशु) नाम के एक कवि-लेखक का नाम सुना, और पहले-पहल उनकी ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ हाथ लगी, तो उसकी भूमिका का शीर्षक था—विनोद कुमार शुक्ल का आश्चर्यलोक। आश्चर्यलोक—विकुशु के
एक दिन दोपहर की चिलचिलाती धूप में, मैं बिल्कुल सामान्य तरीक़े से सड़क पार कर रही थी। तभी अचानक, एक बाइक वाले ने मुझे इतनी ज़ोर से टक्कर मारी कि मैं समय से कुछ इंच पीछे गिर पड़ी। लोगों ने मुझे उठाया,
गाओची रोड से मेरा पहला परिचय तब हुआ था, जब मैं इस सड़क के किनारे वाली कॉलोनी में कमरे की तलाश में गया था। कमरा मुझे रसोई के साथ चाहिए था। ऐसे कमरे शिन चू में कम ही मिलते हैं। गाओची रोड के पास वाली कॉ
पिछले बरस एक ख़बर पढ़ी थी। मुंगेर के टेटिया बंबर में, ऊँचेश्वर नाथ महादेव की पूजा करने पहुँचे प्रेमी युगल को गाँव वालों ने पकड़कर मंदिर में ही शादी करा दी। ख़बर सार्वजनिक होते ही स्क्रीनशॉट, कलात्मक-कैप
दिनेश श्रीनेत की कहानियों का संग्रह प्रकाशित होकर सामने आया है और मैं ख़ुशी के साथ एक अजीब से एहसास से भी सराबोर हूँ। मैं इस एहसास को कोई नाम देने में ख़ुद को लाचार समझता हूँ। मगर इस एहसास के केंद्र
फागुन और चैत के मदमस्त, अलसाये दिन-रात के बर’अक्स वैशाख बड़ा कामकाजी महीना है―खेत-खलिहान से संपृक्त महीना। पुराणों में इसे ‘माधव मास’ कहा गया है, लेकिन रसिकों ने इसे ‘मधुमास’ कहा है। और हो भी क्यों न!
23 मई 2025
दूसरी कड़ी से आगे... हाँ तो मैं ऑटो में था। वह धड़धड़ाता हुआ बैरहना डाट पुल से सीएमपी कॉलेज से मेडिकल चौराहा होते हुए सिविल लाइंस, हनुमान मंदिर के पास पहुँचा। मैं वहाँ से सीधा पुस्तक मेला गया। मेल
तीसरी कड़ी से आगे... उन दिनों हॉस्टल के हर कमरे से ‘वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी’ की आवाज़ें आती थी। हर कमरे से कोई एक नाक सुड़कता, सुबकता मिल जाता था। उन दिनों जब भारत ने विश्व कप जीता तो
मैं इस पर बिल्कुल विश्वास नहीं करता हूँ कि नाम में क्या रखा है? मेरे पूर्वजों ने बतलाया है कि अपने माँ-बाप का नाम रोशन करना। इसलिए नाम के प्रति मैं बहुत संजीदगी रखता हूँ। मेरे गाँव में भी लोग नाम के