साहित्य और संस्कृति की घड़ी
भारत रंग महोत्सव में के. के. रैना द्वारा निर्देशित और इला अरूण द्वारा अनूदित नाटक ‘अजातशत्रु’ की बेहतरीन प्रस्तुति हुई। यह नाटक का प्रभाव था या फिर के. के. रैना और इला अरूण के नाम का प्रभाव; प्रेक्षाग
शीत की साग-सब्ज़ियों से अटी पड़ी सब्ज़ी मंडियों के बाहर अत्यक्त भाव से बिकते सिंघाड़ों को देखकर जी करुणा से भर आया। ऐसे सरस फल को कैसे इतनी जल्दी बीते दिनों की बात बना हम आगे बढ़ गए। कार्तिक महीने
• एक प्रकाशक को देखकर मेरे मन में सबसे पहला ख़याल यही आता है कि उससे किताब ले लूँ। यहाँ ‘किताब ले लेने’ का अर्थ एकायामी नहीं है। • हिंदी के साहित्यिक प्रकाशकों के विषय में जो बात सबसे ज़्यादा परेशा
इस किताब को पढ़ते हुए यह महसूस होता है कि कवि-कथाकार-फ़िल्मकार देवी प्रसाद मिश्र की कहानियों के साथ चलना ख़ुद को विशद करना और उदात्त करना ही तो है। ‘कोई है जो’ खिड़की से भीतर गया, दरवाज़े से भीतर जात
भारत रंग महोत्सव की तीसरी संध्या को, एमआईटी-एडीटी विश्वविद्यालय, रंगमंच विभाग के प्रथम वर्ष के छात्रों द्वारा ‘कंजूस’ नाटक प्रस्तुत किया गया। कलाकारों ने कंजूसी से इस नाटक का प्रदर्शन किया। नाटक में
6 अगस्त 2017 की शाम थी। मैं एमए में एडमिशन लेने के बाद एक शाम आपसे मिलने आपके घर पहुँचा था। अस्ल में मैं और पापा, एक ममेरे भाई (सुधाकर उपाध्याय) से मिलने के लिए वहाँ गए थे जो उन दिनों आपके साथ रहा कर
‘अम्बर परियाँ’ बलजिंदर नसराली का तीसरा उपन्यास है। इससे पहले पंजाबी में उनके दो उपन्यास आ चुके हैं। उन्होंने कहानियाँ भी लिखी हैं। उनके दो कहानी संग्रह ‘डाकखाना खास’ और ‘औरत की शरण में’ भी प्रकाशित ह
नई दिल्ली में जन्मीं साहित्यिक पत्रकारिता से लंबे समय तक संबद्ध रहने वालीं गगन गिल नब्बे के दशक में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ के साथ अपनी अभूतपूर्व उपस्थिति से हिंदी कविता के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़
सुरेन्द्र वर्मा का जन्म सन् 1941 को झाँसी में हुआ, वह हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। उनका नाटक ‘सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’ सन् 1972 में प्रकाशित हुआ। उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’
• 1 फ़रवरी से 9 फ़रवरी के बीच नई दिल्ली के प्रगति मैदान [भारत मंडपम] में आयोजित विश्व पुस्तक मेले की स्थिति जानने की उत्कंठा जैसे आप सबको है, वैसे ही धृतराष्ट्र को भी है। वह अपनी इस आकांक्षा की पूर्ति