Font by Mehr Nastaliq Web

समीक्षा : मृत्यु अंत है, लेकिन आश्वस्ति भी

मृत्यु ऐसी स्थिति है, जिसका प्रामाणिक अनुभव कभी कोई लिख ही नहीं सकता; लेकिन इस कष्टदायी अमूर्तता के स्वरूप, दृश्य और प्रभाव को वरिष्ठ कवि अरुण देव ने पूरी सफलता के साथ काव्य शैली में ढाल दिया है। ‘मृत्यु : कविताएँ’ इस मायने में अनूठा संग्रह है कि हिंदी-साहित्य में मृत्यु-संबंधी कविताओं की यह इकलौती पूरी किताब है। कवि ने मृत्यु का एक पूरा दर्शन रच दिया है। यह संग्रह मृत्यु की बनी-बनाई अवधारणा के विपरीत नई दृष्टि प्रदान करता है। नदी तीरे मसान में जलती चिताओं के दृश्य हों या मृत्यु की महत्ता के पक्ष में दिए कवि के तर्क; अरुण देव हर स्थिति को रखने और उद्दीप्त करने में महारत रखते हैं।

शब्दों की कमख़र्ची से भावों का पूरा कोश उड़ेल देने की कला में निपुण कुछ चुनिंदा कवियों में शामिल हैं अरुण देव। कविताएँ आकार में छोटी हैं लेकिन विषयवस्तु और प्रभाव में बहुत बड़ी। दर्शन और रस का अद्भुत मिलाप है इस संग्रह में। मृत्यु के बहाने कवि दरअस्ल जीवन को जीवंतता देने की बात करता है। उसकी कला जीवन की हिमायती है।

इन कविताओं पर गीता और वेदों का प्रभाव है लेकिन कवि ने अपने चिंतन और अंदाज़-ए-बयाँ से इसे ताज़गी दी है। इन कविताओं में मृत्यु डराती नहीं है; माँ की थपकी देती प्रतीत होती है। कवि लिखते हैं—“जब पुतलियों के उठने की इच्छा भी मर जाती है/ उन्हें ढक देती है/ अपनी करुणा से वह।”

मृत्यु अंत है लेकिन आश्वस्ति भी। यहाँ कवि फूल, रंग और फल के टपक जाने के बाद बीज के रह जाने का उदाहरण देकर नवजीवन के लिए मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार करता है। मूल रूप से यह कविताएँ दर्शन की कविताएँ लगती हैं। अधिकांश कविताओं में अलग-अलग उदाहरणों से पंचमहाभूतों के अपनी-अपनी जगह पहुँच जाने, शारीरिक कष्टों से मुक्ति तथा प्रकृति और विकृति के संबंधों को दर्शाया है, लेकिन इन्हीं कविताओं में प्रतिरोध के स्वर भी हैं। मृत्यु को सहज भाव से स्वीकार करना ही दरअस्ल निर्भय हो जाना है। इसी पुस्तक की भूमिका में राधावल्लभ त्रिपाठी ने तफ़्सील से इस पर रौशनी डाली है। दसवीं कविता में मृत्यु के भय के बहाने कवि कितना सटीक प्रहार करता है, देखिए—“मृत्यु से पहले/ मृत्यु के डर से/ मर जाते हैं लोग/ मरे हुए लोगों के पास नहीं जाती वह”

इकसठवीं कविता मन-मस्तिष्क में अटक गई है। साम्राज्यवादी दैत्य का युद्ध में मासूमों को निगलते जाना, रोते बिलखते परिजन, जख़्मी बच्चे का दूसरे रोते बच्चे को चुप कराना और उससे भी छोटे को बिलखते देख पहले वाले बच्चे का चुप हो जाना... उफ़्फ! पूरा फिलस्तीन इस एक कविता में कवि ने उतार दिया और इसका निचोड़ है यह अंतिम पंक्ति—“मलबे से निकल रहे हैं फूल जैसे बच्चे”

बचपन में सुपर कमांडो ध्रुव की एक कॉमिक्स पढ़ी थी—‘मुझे मौत चाहिए’। इसमें एक बूढ़े को अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन वह अपने जीवन से परेशान था और मृत्यु के लिए लगातार प्रयास करता रहता था। इस संग्रह की चौबीसवीं कविता की अंतिम पंक्ति है—“देह बिलखती है मृत्यु के लिए”, उस बूढ़े की पीड़ा को इस पंक्ति में महसूस कर पा रहा हूँ।

मृत्यु के बाद के दृश्य रचने में कवि की विशिष्ट प्रतिभा के दर्शन होते हैं। पुस्तक में अलग-अलग स्थितियों में इन दृश्यों की बहुतायत है। इनसे गुज़रते हुए महसूस होता है कि रचनाकार ने गद्य की रेखाचित्र विधा को पद्य में उतार दिया है।

मृत्यु, जीवन, संसार आदि के लिए कवि ने जिन बिंबों और उपमाओं का प्रयोग किया है, उनमें नवीनता है। कहन भी प्रभावित करता है। कुछ उदाहरण देखिए—“इस कुएँ से रस्सी के सहारे/ बाहर निकला/ जिसे लटका रखा था मृत्यु ने।”

“पत्ते पर रखी काँपती रौशनी
विसर्जित होती है अब लहरों पर”

“फूल की कब्र पर हरे पत्तों के ज़ख्म है”

इन कविताओं में एक ख़ास बात यह है कि जीवन से निवृत्ति की नहीं, प्रवृत्ति की कविताएँ हैं। इनमें पलायनवादी दृष्टिकोण का स्पष्ट नकार है। मृत्यु से निर्भय रहने की बात इसलिए है कि जीवन को जीवन की तरह जिया जाए। जो दूसरों के सुख-दुख में हँसते-रोते नहीं और हमेशा क्रोध और घृणा से भरे रहते हैं, ऐसे लोगों को कवि प्रेत की तरह भटकता हुआ मानता है।

कवि का दुख है कि अन्याय, हिंसा, हत्या, कट्टरता और तानाशाही की मृत्यु क्यों नहीं होती। बुरे दिनों का अंतिम दिन कब होगा पूछकर कवि विश्वव्यापी चिंता को स्वर देता है।

संग्रह की कुछ कविताएँ सीधे-सीधे धर्म, सत्ता और पूँजी के गठजोड़ वाली व्यवस्था पर चोट करती हैं। इस व्यवस्था में शृंगार से कुरूपता, तुरही की आवाज़ से अन्याय और चमकते दृश्यों से निराश्रित लोग ढक दिए जाते हैं। जो दिखता है वह केवल भ्रम होता है। कवि इस व्यवस्था से सवाल पूछता है—“यह दीए किसकी अगवानी में जले हैं”

कविता ‘संख्या नवासी’ बेहद मारक कविता है, जहाँ कवि धर्म के पाखंड पर प्रहार करता है। इस पाखंड और संकीर्णता ने धर्म को भी हिंसक बना दिया है। कवि कहता है—“मैं भागता रहता हूँ अनुसरण से/ आस्था का एक छुरा है मेरे नाम का।”

यक़ीनी तौर पर कह सकता हूँ कि पिछले कुछ वर्षों में आए सबसे बेहतरीन चुनिंदा कविता-संग्रहों में से एक है ‘मृत्यु : कविताएँ’।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं

बेला लेटेस्ट

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए