आत्मा पर कविताएँ

आत्मा या आत्मन् भारतीय

दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।

गिरना

नरेश सक्सेना

दुर्दिन है आज

ओसिप मंदेलश्ताम

आत्मत्राण

रवींद्रनाथ टैगोर

आत्मा को शांति मिले

निकानोर पार्रा

एक शब्द ऐसा है

एमिली डिकिन्सन

नदी का बुलावा

गाब्रियल ओकारा

एक आत्मा का रेशम

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

इतनी आत्मा

निधीश त्यागी

बिल्ली की आत्मा

गार्गी मिश्र

आत्मा विकलता है क्या

नंदकिशोर आचार्य

आत्माएँ

सुमित त्रिपाठी

असंबद्ध

गीत चतुर्वेदी

नील विहग

श्री अरविंद

चुप है आत्मा...

अलेक्सांद्र ब्लोक

अभी टिमटिमाते थे

तेजी ग्रोवर

बनारस

कुमार मंगलम

आशा बलवती है राजन्

नंद चतुर्वेदी

चमड़ी

सुमित त्रिपाठी

शरीर के बोझ तले

नितेश व्यास

इतनी आत्मा

निधीश त्यागी

शब्दों का बोझ

महेश कुमार जोशी

उदास वीणा

रमेश प्रजापति

रूह और जिस्म

द्वारिका उनियाल

गुड़ की डली

प्रदीप सैनी

बदन का बोझ

पुरुषोत्तम प्रतीक

रूह

बेबी शॉ

वृक्ष

श्री अरविंद

शरीर-आत्मा

कुमार मुकुल

आइसोलेशन, एक कमरा

सौम्या सुमन

गुलमोहर

आंशी अग्निहोत्री

आत्मा की मृत्यु

नेहा अपराजिता

आहें और राहें

आलोक रंजन

सुंदर जगहें

ज्याेति शोभा

रावण-राम की कथा

चंद्रेश्वर

हाफ़ स्वेटर

चंद्रेश्वर

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere