यात्रा पर कविताएँ

यात्राएँ जीवन के अनुभवों

के विस्तार के साथ मानव के बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्वयं जीवन को भी एक यात्रा कहा गया है। प्राचीन समय से ही कवि और मनीषी यात्राओं को महत्त्व देते रहे हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में ध्वनित ‘चरैवेति चरैवेति’ या पंचतंत्र में अभिव्यक्त ‘पर्यटन् पृथिवीं सर्वां, गुणान्वेषणतत्परः’ (जो गुणों की खोज में अग्रसर हैं, वे संपूर्ण पृथ्वी का भ्रमण करते हैं) इसी की पुष्टि है। यहाँ प्रस्तुत है—यात्रा के विविध आयामों को साकार करती कविताओं का एक व्यापक और विशेष चयन।

अंतिम ऊँचाई

कुँवर नारायण

मुलाक़ातें

आलोकधन्वा

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे

विनोद कुमार शुक्ल

देना

नवीन सागर

ट्राम में एक याद

ज्ञानेंद्रपति

अटूट क्रम

कुँवर नारायण

या

सौरभ अनंत

उड़ते हुए

वेणु गोपाल

उठ जाग मुसाफ़िर

वंशीधर शुक्ल

जाना

केदारनाथ सिंह

ज़रूर जाऊँगा कलकत्ता

जितेंद्र श्रीवास्तव

मैं अंतर्मुखी होकर

विनोद कुमार शुक्ल

मुझे क़दम-क़दम पर

गजानन माधव मुक्तिबोध

अनागत

देवी प्रसाद मिश्र

हमसफ़र

सुधांशु फ़िरदौस

ओ मेरी मृत्यु!

सपना भट्ट

घर

ममता बारहठ

इलाहाबाद

संदीप तिवारी

पहले भी आया हूँ

कुँवर नारायण

याद

कैलाश वाजपेयी

होना

सुघोष मिश्र

2020 में गाँव की ओर

विष्णु नागर

उतना ही असमाप्त

कुँवर नारायण

त्रा

सौरभ अनंत

सात दिन का सफ़र

मंगलेश डबराल

अभी हूँ

अनाम कवि

साइकिल

बद्री नारायण

2020

संजय चतुर्वेदी

नमक पर यक़ीन ठीक नहीं

नवीन रांगियाल

रेलपथ

बेबी शॉ

वैसे ही चलना दूभर था

मुकुट बिहारी सरोज

किताब

सौरभ अनंत

धरती का चक्कर

अर्चना लार्क

स्वप्न

सौरभ अनंत

कोई तो

रचित

मेट्रो से दुनिया

निखिल आनंद गिरि

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere