यात्रा पर गीत

यात्राएँ जीवन के अनुभवों

के विस्तार के साथ मानव के बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्वयं जीवन को भी एक यात्रा कहा गया है। प्राचीन समय से ही कवि और मनीषी यात्राओं को महत्त्व देते रहे हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में ध्वनित ‘चरैवेति चरैवेति’ या पंचतंत्र में अभिव्यक्त ‘पर्यटन् पृथिवीं सर्वां, गुणान्वेषणतत्परः’ (जो गुणों की खोज में अग्रसर हैं, वे संपूर्ण पृथ्वी का भ्रमण करते हैं) इसी की पुष्टि है। यहाँ प्रस्तुत है—यात्रा के विविध आयामों को साकार करती कविताओं का एक व्यापक और विशेष चयन।

आओ हम पथ से हट जाएँ

हरिवंशराय बच्चन

नदी के तीर पर ठहरे

विनोद श्रीवास्तव

चिर सजग आँखें

महादेवी वर्मा

पहले हमें नदी का सपना

विनोद श्रीवास्तव

इस पथ से आना

महादेवी वर्मा

पंथ होने दो अपरिचित

महादेवी वर्मा

गीत लिखें कि...

राघवेंद्र शुक्ल

कर्म-पथ

शंभुनाथ सिंह

किसको भूलूँ

रमानाथ अवस्थी

बढ़ रहे चरण

शंभुनाथ सिंह

अपने ही इर्द-गिर्द

देवेंद्र कुमार बंगाली

दिन के यायावर को

देवेंद्र कुमार बंगाली

ऐ मुसाफ़िर

राघवेंद्र शुक्ल

राहें

नरेंद्र शर्मा

पत्ते-पत्ते

देवेंद्र कुमार बंगाली

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere