सरदार वल्लभ भाई पटेल के उद्धरण


अधिकार हज़म करने के लिए जब तक पूरी क़ीमत न चुकाई जाए, तब तक यदि अधिकार मिल भी जाए तो उसे गँवा बैठेंगे।
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सिपाही यह कहे कि हमें लड़ना तो है, मगर वे हथियार नहीं रखने हैं जो सेनापति बतलाता है, तो वह लड़ाई नहीं चल सकती।
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मनुष्य रुपया कमाना जानता है, परंतु सभी को यह मालूम नहीं होता कि कमाई का सदुपयोग कैसे किया जाए।
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देश की सेवा करने में जो मिठास है, वह और किसी चीज़ में नहीं है।
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अब जात-पाँत के, ऊँच-नीच के, संप्रदायों के भेद-भाव भूलकर सब एक हो जाइए। मेल रखिए और निडर बनिए। तुम्हारे मन समान हों। घर में बैठकर काम करने का समय नहीं है। बीती हुई घड़ियाँ ज्योतिषी भी नहीं देखता।

जो किसान मूसलाधार बरसात में काम करता है, कीचड़ में खेती करता है, मरखने बैलों से काम लेता है और सर्दी-गर्मी सहता है, उसे डर किसका?

हमें चार चीज़ों की ज़रूरत है। हवा, पानी, रोटी और कपड़ा। दो चीज़ें भगवान ने मुफ़्त दी हैं। और जैसे रोटी घर में तैयार होती है, वैसे ही कपड़ा भी हमारे घर में बनना चाहिए।

अपने मंदिरों को अछूतों के लिए खोलकर सच्चे देव-मंदिर बनाइए। आपके ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर के झगड़ों की दुर्गंध भी कँपकँपी लाने वाली है। जब तक आप इस दुर्गंध को नहीं मिटाएँगे, तब तक कोई काम नहीं होगा।
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राज्य अपना धर्म पालन करे या न करे, मगर हमें तो अपना कर्त्तव्य पूरा करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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मैं किसानों को भिखारी बनते नहीं देखना चाहता। दूसरों की मेहरबानी से जो कुछ मिल जाए, उसे लेकर जीने की इच्छा की अपेक्षा अपने हक़ के लिए मर-मिटना मैं ज़्यादा पसंद करता हूँ।
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अस्पृश्य की व्याख्या आप जानते हैं। प्राणी के शरीर में से जब प्राण निकल जाते हैं, तब वह अस्पृश्य बन जाता है। मनुष्य हो या पशु, जब वह प्राणहीन बनकर शव होकर पड़ जाता है—तब उसे कोई नहीं छूता, और उसे दफ़नाने या जलाने की क्रिया होती है। मगर जब तक मनुष्य या प्राणिमात्र में प्राण रहते हैं, तब तक वह अछूत नहीं होता। यह प्राण प्रभु का एक अंश है और किसी भी प्राण को अछूत कहना भगवान के अंश का, भगवान का तिरस्कार करने के बराबर है।
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जहाँ किसान सुखी नहीं है, वहाँ राज्य भी सुखी नहीं है और साहूकार भी सुखी नहीं है।

किसान के बराबर सर्दी, गर्मी, मेह, और मच्छर-पिस्सू वगैरा का उपद्रव कौन सहन करता है?

यह शरीर मिट्टी का बना हुआ है, मिट्टी के पुतले की तरह टूट जाने वाला है। लाठियों से सिर के टुकड़े हो जाएँगे, मगर दिल के टुकड़े नहीं होंगे। आत्मा को गाली या लाठी नहीं मार सकती। दिल के भीतर की असली चीज़ को— आत्मा को कोई हथियार नहीं छू सकता।

थोड़ा भाषण देना आ जाने से, और अख़बारों मे लिखना सीख जाने से ही नेता बन जाने की नौजवानों मे कल्पना हो तो वह ग़लत है। सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ना चाहिए
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जिसने ईश्वर को पहचान लिया, उसके लिए तो दुनिया में कोई अछूत नहीं है। उसके मन में ऊँच-नीच का भेद नहीं है।
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प्राण लेने का अधिकार तो ईश्वर को है। सरकार की तोप बंदूक़ें हमारा कुछ नहीं कर सकतीं।
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इस धरती पर अगर किसी को सीना तानकर चलने का अधिकार हो, तो वह धरती से धन-धान्य पैदा करने वाले किसान को ही है।
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मनुष्यों के दिल सुंदर व्याख्याओं से नहीं हिलाए जा सकते और हिलाए जा सकते हों तो भी क्षण भर के लिए ही। यदि हमें कोई बड़ा काम करना हो, तो करके ही दिखाया जा सकता है।
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भगवान के आगे झुकना चाहिए, दूसरों के आगे नहीं झुकना चाहिए। हमारा सिर कभी न झुकनेवाला होना चाहिए। देहात में रहनेवाले लोग निर्भय होने चाहिए, इसके बजाय उनमें हमेशा डर होता है।
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जो काम कल करने का है, उसकी बातों में ही आज का काम बिगड़ जाएगा। और आज के बिना कल का काम नहीं होगा। हम अपने फ़र्ज़ से चूकेंगे। आज का काम कीजिए, तो कल का काम अपने आप हो जाएगा।
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सारी दुनिया किसान के आधार पर टिकी हुई है। दुनिया के आधार किसान और मज़दूर पर है। फिर भी सबसे ये दोनों बेज़ुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। ज़्यादा ज़ुल्म कोई सहता है, तो ये दोनों हो सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेज़ुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं।
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हमारी भारत-भूमि की एक बड़ी विशेषता है। चाहे जितने उतार-चढ़ाव आएँ, तो भी पुण्यशाली आत्माएँ यहाँ जन्म लेती ही हैं।
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सच्ची बात तो यह है कि दो घोड़ों पर सवारी नहीं हो सकती, एक घोड़े पर ही सवारी होगी। अपना घोड़ा पसंद कर लो।
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