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जवाहरलाल नेहरू

1889 - 1964 | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

स्वतंत्रता आंदोलन के सर्वोच्च नेताओं में से एक। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री। भारत के संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक स्वरूप के वास्तुकार। 'दी डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' जैसी कृति के रचनाकार।

स्वतंत्रता आंदोलन के सर्वोच्च नेताओं में से एक। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री। भारत के संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक स्वरूप के वास्तुकार। 'दी डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' जैसी कृति के रचनाकार।

जवाहरलाल नेहरू के उद्धरण

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भीड़ की सतही कार्यवाहियों की अपेक्षा, कला और साहित्य राष्ट्र की आत्मा को महान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। वे हमें शांति और निरभ्र विचार के राज्य में ले जाते हैं, जो क्षणिक भावनाओं और पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होते।

अभावों में मरने की अपेक्षा संघर्ष करते हुए मरना अधिक अच्छा है, दुःखपूर्ण और निराश जीवन की अपेक्षा मर जाना बेहतर है। मृत्यु होने पर नया जन्म मिलेगा। और वे व्यक्ति अथवा राष्ट्र जो मरना नहीं जानते, यह भी नहीं जानते कि जिया कैसे जाता है।

काम का अंदाज़ा यह है कि इस मुल्क में ऐसे कितने लोग हैं—जिनकी आँखों से आँसू बहते हैं, उनमें से कितने आँसू हमने पोंछे, कितने आँसू हमने कम किए। वह अंदाज़ा है इस मुल्क की तरक़्क़ी का, कि इमारतें जो हम बनाएँ, या कोई शानदार बात जो हम करें।

अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।

अंग्रेज़ उन बातों में बड़े ईमानदार हैं, जिनसे उनका फ़ायदा हो सकता है।

उपनिषद् छान-बीन की, मानसिक साहस की, और सत्य की खोज के उत्साह की भावना से भरपूर हैं। यह सही है कि यह सत्य की खोज मौजूदा ज़माने के विज्ञान के प्रयोग के तरीकों से नहीं हुई है, फिर भी जो तरीका अख़्तियार किया गया है, उसमें वैज्ञानिक तरीके का एक अंश है हठवाद को दूर कर दिया गया है।

औरों की कमज़ोरियों की तरफ़ देखें, औरों की नुक्ता-चीनी करें—अपनी तरफ़ देखें। अगर हर एक आदमी अपना-अपना कर्तव्य करता है, अपना-अपना फ़र्ज़ अदा करता है, तो दुनिया का काम बहुत आगे जाएगा।

किसी उच्चादर्श में कुछ आस्था होना- अपने जीवन को सार्थक करने और हमें बाँधे रखने के लिए आवश्यक है।

इतिहास तो एक सिलसिलेवार मुकम्मिल चीज़ है, और जब तक तुम्हें यह मालूम हो कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में क्या हुआ—तुम किसी एक देश का इतिहास समझ ही नहीं सकतीं।

इंसान भले ही तारों तक पहुँच पाए, लेकिन उनकी तरफ़ देखा तो करता ही है। तो सिर्फ़ इसलिए अपने आदर्शों को नीचे करना ठीक नहीं, कि वे बहुत ऊँचे हैं- भले ही आप उनको पूरा-पूरा हासिल कर सकें।

क्या कभी वह रोशनी ख़त्म हो सकती है जो महात्मा गांधी ने इस देश में दुनिया में डाली? आज से हज़ार वर्षं बाद भी यह रोशनी चमकेगी और इस देश को और दुनिया को चमकाएगी।

जबकि मनुष्य भूखा हो या मर रहा हो, उस वक़्त संस्कृति या भगवान के विषय में बात करना बेवक़ूफ़ी है, और किसी चीज़ के बारे में बात करने से पहले, आदमी को उसकी ज़िंदगी की आम ज़रूरत की चीज़ें मिलनी चाहिए। यहाँ अर्थशास्त्र आता है।

आज़ादी और ताक़त अपने साथ ज़िम्मेदारी लाती हैं।

दूसरों की ग़लतियों की आलोचनाएँ ज़रूर की जाएँ लेकिन हमें अपनी तरफ़ भी ज़रूर देखना चाहिए।

आज हम हिंदुस्तान की पूरी आज़ादी चाहते हैं।

यह कुछ अजीब बात है कि जिन पत्रों को लिखने की हमारी सबसे ज़्यादा इच्छा रहती है, वे अक्सर देर में लिखे जाते है।

परिवर्तन का चक्र घूमता रहता है और जो नीचे थे वे ऊपर जाते हैं, और जो ऊपर थे वे नीचे गिर जाते हैं।

मतभेदों का होना अनिवार्य है। इनका हमें सम्मान करना चाहिए, और ऐसा नहीं करना चाहिए कि दूसरों के मतभेदों को मिटाने के लिए अपनी मर्ज़ी उन पर थोपी जाए।

अँग्रेज़ उन बातों में बड़े ईमानदार हैं, जिनसे उनका फ़ायदा हो सकता है।

अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।

हम अपना कर्तव्य पूरा करेंगे, और जो लोग हमारे बाद आएँगे—उस काम को चालू रखेंगे, क्योंकि देश के काम कभी ख़त्म नहीं होते। देश के लोग आटे हैं और जाते हैं, लेकिन देश अमर होता है और क़ौम अमर रहती है।

प्रायः दुनिया का हर देश यह विश्वास करता है कि स्रष्टा ने उसे कुछ विशेष गुण देकर भेजा है, कि वही दूसरों की अपेक्षा श्रेष्ठ जाति या समुदाय का है। चाहे दूसरे अच्छे हों या बुरे, लेकिन उनसे कुछ घटिया प्राणी हैं।

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