जवाहरलाल नेहरू की संपूर्ण रचनाएँ
पत्र 3
निबंध 10
उद्धरण 15

अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।
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औरों की कमज़ोरियों की तरफ़ न देखें, औरों की नुक्ता-चीनी न करें—अपनी तरफ़ देखें। अगर हर एक आदमी अपना-अपना कर्तव्य करता है, अपना-अपना फ़र्ज़ अदा करता है, तो दुनिया का काम बहुत आगे जाएगा।
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इंसान भले ही तारों तक पहुँच न पाए, लेकिन उनकी तरफ़ देखा तो करता ही है। तो सिर्फ़ इसलिए अपने आदर्शों को नीचे करना ठीक नहीं, कि वे बहुत ऊँचे हैं- भले ही आप उनको पूरा-पूरा हासिल न कर सकें।
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किसी उच्चादर्श में कुछ आस्था होना- अपने जीवन को सार्थक करने और हमें बाँधे रखने के लिए आवश्यक है।
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