आवाज़ पर दोहे
वाणी, ध्वनि, बोल, पुकार,
आह्वान, प्रतिरोध, अभिव्यक्ति, माँग, शोर... अपने तमाम आशयों में आवाज़ उस मूल तत्त्व की ओर ले जाती है जो कविता की ज़मीन है और उसका उत्स भी।
अरी मधुर अधरान तैं, कटुक बचन मत बोल।
तनक खुटाई तैं घटै, लखि सुबरन को मोल॥
संतत सहज सुभाव सों, सुजन सबै सनमानि।
सुधा-सरस सींचत स्रवन, सनी-सनेह सुबानि॥
नयन रँगीले कुच कठिन, मधुर बयण पिक लाल।
कामण चली गयंद गति, सब बिधि वणी, जमाल॥
हे प्रिय, उस नायिका के प्रेम भरे नेत्र अनुराग के कारण लाल हैं। उन्नत स्तन, कोयल-सी मधुर वाणी वाली सब प्रकार से सजी हुई गजगामिनी कामिनी चली जा रही है।
“वखना” बांणी सो भली, जा बांणी में राम।
बकणा सुणनां वोलणां, राम बिना बेकांम॥
बाणी हरि कौ लिये, सुन्दर वाही उक्त।
तुक अरु छन्द सबै मिलैं, होइ अर्थ संयुक्त॥
अद्भुत एनी परत तुव, मधुवानी श्रुति माहिं।
सब ज्ञानी ठवरे रहैं, पानी माँगत नाहिं॥
सुन्दर वचन सु त्रिबिधि है, उत्तम मध्य कनिष्ट।
एक कटुक इक चरपरै, एक वचन अति मिष्ट॥
झुकति पलक झूमति चलति,अलक छुटी सुखदानि।
नहिं बिसरै हिय में बसी, वा अलसौहीं बानि॥
सुन्दर जां प्रवीण अति, ताकै आगै आइ।
मूरख वचन उचारि कैं, वांणी कहै सुनाइ॥
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere